तुर्की की साइप्रस से कैसी दुश्मनी? 50 साल पहले ईसाई देश को दिया था कौन सा जख्म

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब यूरोपीय देश साइप्रस पहुंचे तो उनका जोरदार स्वागत किया है. साइप्रस के राष्ट्रपति निकोस क्रिस्टोडोलिडेस ने उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान से नवाजा. 23 साल में यह पहला मौका है, जब किसी भारतीय प्रधानमंत्री ने साइप्रस का दौरा किया है. इससे भी बड़ी बात यह है कि साइप्रस की तुर्की के साथ लंबे समय से दुश्मनी चल रही है. और ऐसे समय में प्रधानमंत्री मोदी का वहां पहुंचना तुर्की के लिए एक कड़ा संदेश माना जा रहा है.
साइप्रस में मुस्लिमों और ईसाई के बीच खूब होती थी लड़ाई
साइप्रस में ग्रीक साइप्रियट्स (ईसाई) की आबादी लगभग 80%, जबकि तुर्की साइप्रियट्स (मुस्लिम) लगभग 18% है. इन दोनों समुदायों के बीच लंबे समय से तनाव था. 1960 में आजादी के बाद, साइप्रस का संविधान दोनों समुदायों के बीच सत्ता के बंटवारे की व्यवस्था करता था. लेकिन बहुसंख्यक ग्रीक साइप्रियट्स और अल्पसंख्यक तुर्की साइप्रियट्स के बीच बार-बार सांप्रदायिक हिंसा भड़कती रही. ग्रीक लोग साइप्रस को ग्रीस के साथ मिलाने की मांग करते थे, जबकि टर्किश लोग साइप्रियट्स द्वीप के विभाजन की वकालत करते थे.
तुर्की की सेना ने साइप्रस के उत्तरी हिस्से पर कब्जा कर लिया, जिसमें प्रसिद्ध पर्यटक शहर वरोशा भी शामिल था. यह शहर, जो कभी ‘मेडिटेरेनियन का मोती’ कहलाता था, तुर्की के कब्जे के बाद वीरान हो गया. तुर्की ने लगभग 35,000 सैनिकों को उत्तरी साइप्रस में तैनात किया और 1983 में इस क्षेत्र को ‘उत्तरी साइप्रस तुर्की गणराज्य’ घोषित कर दिया. हालांकि, इस स्वघोषित गणराज्य को अंतरराष्ट्रीय समुदाय में केवल तुर्की से ही मान्यता प्राप्त है, जबकि बाकी विश्व ग्रीक साइप्रियट्स के नियंत्रण वाले साइप्रस गणराज्य को ही वैध मानता है.
‘इस्लामी खलीफा’ का जख्म?
तुर्की के इस आक्रमण को ग्रीक साइप्रियट्स और उनके समर्थक देश ‘इस्लामी विस्तारवाद’ के रूप में देखते हैं. तुर्की के तत्कालीन नेतृत्व ने इस कार्रवाई को तुर्की साइप्रियट्स की सुरक्षा और उनके अधिकारों की रक्षा के रूप में पेश किया. हालांकि, आलोचकों का मानना है कि यह तुर्की की क्षेत्रीय महत्वाकांक्षाओं का हिस्सा था. तुर्की के राष्ट्रपति रजब तैयब एर्दोगान ने हाल के वर्षों में इस विवाद को और हवा दी है. खासकर जब उन्होंने 2021 में कहा कि साइप्रस समस्या का समाधान केवल दो अलग-अलग राज्यों के मान्यता से ही संभव है. यह बयान ग्रीक साइप्रियट्स और यूरोपीय संघ के लिए एक गहरे जख्म की तरह था, क्योंकि यूरोपीय संघ साइप्रस के एकीकरण का समर्थन करता है.
भारत और साइप्रस के बीच कैसे संबंध?
भारत ने हमेशा संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों और अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत साइप्रस समस्या के समाधान का समर्थन किया है. साइप्रस ने भी भारत के परमाणु परीक्षण (1998) और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की उम्मीदवारी का समर्थन किया है.
पीएम मोदी का साइप्रस दौरा, तुर्की को संदेश
मोदी की यह यात्रा साइप्रस के राष्ट्रपति निकोस क्रिस्टोडौलाइड्स के निमंत्रण पर हो रही है. साइप्रस यूरोपीय संघ का सदस्य है और 2026 में इसकी अध्यक्षता करने वाला है. ऐसे में भारत के लिए यह देश रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण हो जाता है. यह यात्रा भारत को पूर्वी भूमध्य सागर में अपनी रणनीतिक पहुंच बढ़ाने का अवसर देती है, जो तुर्की के प्रभाव क्षेत्र में एक सॉफ्ट एंट्री मानी जा रही है.
साइप्रस ने हाल ही में पहलगाम आतंकी हमले की निंदा की थी और यूरोपीय संघ में पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद के मुद्दे को उठाने का संकेत दिया था. यह भारत के लिए एक महत्वपूर्ण समर्थन है, खासकर जब तुर्की ने संयुक्त राष्ट्र जैसे मंचों पर कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान का साथ दिया है. मोदी की यात्रा के दौरान व्यापार, रक्षा, और ऊर्जा सहयोग जैसे क्षेत्रों में समझौतों की उम्मीद है, जो भारत-साइप्रस संबंधों को और गहरा करेगा.
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