सभी जातियों ने दिया महापुरुष, भागवत बोले- इनमें ऐसा कोई नहीं जिसका देश के लिए संघर्ष में योगदान न हो

RSSचीफ मोहन भागवत ने मंगलवार को कानपुर में सामाजिक समरसता पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि ऐसी कोई जाति नहीं जिसने देश के उत्थान के दौरान संघर्ष में योगदान न दिया हो। समाज की सभी जातियों ने महापुरुष दिए हैं। श्मशान, मंदिर और जलाशयों पर सभी हिंदुओं का समान अधिकार है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर कार्यवाहक मोहन भागवत ने मंगलवार को कानपुर के कारवालो नगर स्थित केशव भवन में सामाजिक समरसता पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि ऐसी कोई जाति नहीं जिसने देश के उत्थान के दौरान संघर्ष में योगदान न दिया हो। समाज की सभी जातियों ने महापुरुष दिए हैं। भागवत ने कहा कि श्मशान, मंदिर और जलाशय (कुआं, नल, तालाब ) पर हिंदू समाज की सभी जातियों का समान अधिकार है। चिंतन-मंथन बैठक में संघ प्रमुख ने कहा कि समरसता संघ की गतिविधि ही नहीं, स्वयंसेवक का स्वभाव भी है। 25-30 सालों से एक साथ काम करने वाले संघ कार्यकर्ता एक-दूसरे की जाति तक नहीं जानते हैं। यह संघ की विशेषता है। स्वयंसेवक अपने कार्य और स्वभाव के जरिए इस तरह की मानसिकता का संपूर्ण समाज के लिए निर्माण करते हैं।
संघ प्रमुख ने कहा कि समरसता स्वयंसेवक का स्वभाव होने के कारण संघ से जुड़ने वाले हर व्यक्ति में इसका भाव होना स्वभाविक हो जाता है। इससे पहले प्रांत के सामाजिक समरसता प्रमुख रवि शंकर ने समरसता की गतिविधियों के बारे में भागवत के समक्ष बिंदुवार जानकारी रखी। बैठक में क्षेत्र प्रचारक अनिल, प्रांत प्रचारक श्रीराम, प्रांत संघ चालक भवानी भीख, प्रांत प्रचार प्रमुख डॉ. अनुपम, क्षेत्र प्रचारक प्रमुख राजेंद्र सिंह, सह प्रांत प्रचारक मुनीश सहित 21 जिलों के जिला समरसता प्रमुख और विभाग समरसता प्रमुख रहे।
गांवों संग बस्ती में भी ले जाएंगे संघ का साहित्य
मोहन भागवत ने कहा कि शताब्दी वर्ष में संघ का साहित्य लेकर हम गांव-गांव, बस्ती-बस्ती जाएंगे। स्वयंसेवक समरसता के पवित्र संदेश को जन-जन तक पहुंचाने का काम करेंगे। संघ दफ्तर की बैठक के दौरान भागवत ने कहा कि इस अंतराल में संघ ने सामाजिक विषमता को समाप्त करने की ठानी है। समता युक्त, शोषण मुक्त, जाति विद्वेष मुक्त भारत बनाना होगा और संघ को यह कार्य तेजी के साथ करना है। स्वयंसेवक का समरसता पूर्ण स्वभाव समाज का स्वभाव बने, इसके लिए सभी को एकजुट होकर तेजी से प्रयास करने की जरूरत है। वैसे भी संघ का काम हिंदुओं को संगठित करने का है। इस वजह से पंच परिवर्तन को लेकर भी काम कर रहे हैं।
एक तरह से जो काम संघ कर रहा है वह समाज का भी असली काम है। विश्व के प्राचीन देश होने के चलते समाज में जातीय विद्वेष किसी प्रकार से स्वीकार न हो। पंच परिवर्तन की बात देश का हर नागरिक समझे और उसके तहत कर्तव्य करे। हमारा देश, यहां की बनी वस्तुएं, हमारी संस्कृति और हमारे संस्कार यह सभी समाज का स्वभाव बने तो भारत के विश्वगुरु बनने का सपना साकार ही नहीं बल्कि मूर्त रूप लेने में भी देर नहीं लगेगी।