रेस्टोरेंट ने पराठा के साथ ग्रेवी नहीं दिया, शख्स पहुंचा कोर्ट, आया फैसला
Last Updated:
Kerala News: क्या रेस्टोरेंट या होटल अपने कंज्यूमर को ऑन डिमांड सर्विस मुहैया कराने के लिए बाध्य है? क्या रेस्टोरेंट अपने उपभोक्ताओं के लिए जवाबदेह होते हैं या नहीं? कंज्यूमर कोर्ट ने इस पर बड़ी व्यवस्…और पढ़ें

कंज्यूमर कोर्ट ने रेस्टोरेंट की ओर से ग्रेवी न देने के खिलाफ दायर याचिका खारिज कर दी है. (सांकेतिक तस्वीर)
एर्नाकुलम (केरल). देश के दक्षिणी राज्य के एर्नाकुलम में एक दिलचस्प मामला सामने आया है. एक व्यक्ति को पराठा और बीफ फ्राई के साथ ग्रेवी नहीं दिया गया है. इसपर शख्स कंज्यूमर कोर्ट चला गया और इसे सर्विस में कमी बताते हुए 1 लाख रुपये बतौर मुआवजा देने की मांग कर डाली. इस मामले में अब कंज्यूमर कोर्ट का फैसला आ गया है. कोर्ट ने याचिका को खारिज करते हुए मुआवजे की मांग को भी ठुकरा दिया है.
जानकारी के अनुसार, जिले के उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (DCDRC) ने हाल ही में एक पत्रकार द्वारा दायर शिकायत को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने एक रेस्टोरेंट (Persian Table) के खिलाफ पराठा और बीफ फ्राई के साथ ग्रेवी न देने को लेकर शिकायत दर्ज की थी. शिकायतकर्ता ने इसे सेवा में कमी करार देते हुए मानसिक पीड़ा और कानूनी खर्चों के लिए मुआवज़े की मांग की थी. शिकायतकर्ता ने आयोग को बताया कि उन्होंने रेस्टोरेंट से पराठा और बीफ फ्राई का ऑर्डर दिया था, लेकिन उसके साथ ग्रेवी नहीं दी गई. उनके अनुसार, यह खाना सूखा था और खाने में दिक्कत हुई. उन्होंने वेटर, मैनेजर और रेस्टोरेंट मालिक से ग्रेवी की मांग की, लेकिन सभी ने स्पष्ट किया कि ड्राई फूड के साथ ग्रेवी न देना रेस्टोरेंट की नीति है.
इस बात से नाराज़ होकर पत्रकार ने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 की धारा 35 के अंतर्गत शिकायत दर्ज की और ₹1 लाख मानसिक पीड़ा के लिए और ₹10,000 कानूनी खर्च के रूप में मुआवज़ा मांगा. शिकायतकर्ता ने रेस्टोरेंट की नीति को अनुचित और शोषण करने वाला करार दिया. ‘लाइव लॉ’ की रिपोर्ट के अनुसार, इसे सेवा में कमी (धारा 2(11)) के अंतर्गत रखा.
आयोग ने शिकायत की जांच के बाद यह पाया कि शिकायतकर्ता ने भोजन की गुणवत्ता, मात्रा या सुरक्षा मानकों के संबंध में कोई आपत्ति नहीं जताई थी. ऐसे में केवल ग्रेवी न देने को सेवा की कमी नहीं माना जा सकता. आयोग ने यह भी कहा कि शिकायतकर्ता और रेस्टोरेंट के बीच ऐसा कोई Contractual संबंध नहीं था, जिससे यह साबित हो सके कि ग्रेवी देना रेस्टोरेंट की कानूनी जिम्मेदारी थी. इसलिए इस मामले में उपभोक्ता और सर्विस प्रोवाइडर के बीच लेन-देन संबंध की वशर्त पूरी नहीं होती है.
आयोग ने अपने आदेश में कहा कि कोई स्पष्ट या परोक्ष अनुबंध न होने और किसी प्रकार की धोखाधड़ी या भ्रामक जानकारी न पाए जाने के आधार पर आयोग ने यह निष्कर्ष निकाला कि रेस्टोरेंट की नीति को सेवा में कमी नहीं माना जा सकता. शिकायत को असंगत और निराधार बताते हुए खारिज कर दिया गया.
यह मामला उपभोक्ता अधिकारों और व्यापारिक नीतियों के बीच संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता को उजागर करता है. आयोग का यह निर्णय बताता है कि सेवा में कमी का दावा केवल उपभोक्ता की अपेक्षाओं के आधार पर नहीं, बल्कि कानूनी और कॉन्ट्रैक्चुअल आधार पर तय किया जाएगा.
About the Author

बिहार, उत्तर प्रदेश और दिल्ली से प्रारंभिक के साथ उच्च शिक्षा हासिल की. झांसी से ग्रैजुएशन करने के बाद दिल्ली यूनिवर्सिटी से पत्रकारिता में PG डिप्लोमा किया. Hindustan Times ग्रुप से प्रोफेशनल कॅरियर की शु…और पढ़ें
बिहार, उत्तर प्रदेश और दिल्ली से प्रारंभिक के साथ उच्च शिक्षा हासिल की. झांसी से ग्रैजुएशन करने के बाद दिल्ली यूनिवर्सिटी से पत्रकारिता में PG डिप्लोमा किया. Hindustan Times ग्रुप से प्रोफेशनल कॅरियर की शु… और पढ़ें
और पढ़ें
Credits To Live Hindustan