राहुल गांधी का चुनाव आयोग पर हमला: बिहार में हार की आशंका या रणनीतिक चतुराई?

पटना. बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की सरगर्मी के बीच कांग्रेस नेता और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने हाल ही में महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में कथित ‘मैच फिक्सिंग’ का आरोप लगाकर एक नया विवाद खड़ा कर दिया है. उन्होंने दावा किया कि महाराष्ट्र में मतदाता सूची में हेरफेर और मतदान प्रतिशत में असामान्य वृद्धि हुई और यह ‘चुनावी धांधली’ का ब्लूप्रिंट अब बिहार में लागू हो सकता है. इस बयान पर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की ओर से तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की गई है, जबकि महागठबंधन ने इसे जनता के हित में उठाया गया मुद्दा करार दिया है. यह विवाद बिहार की सियासत में नया मोड़ ला सकता है, क्योंकि एनडीए के नेता अब यह कहने लगे हैं कि बिहार चुनाव से पहले ही राहुल गांधी ने महागठबंधन की हार मान ली है. आखिर इसके राजनीतिक संदेश क्या हैं, क्या राहुल गांधी ने वाकई में एक तरह से सेल्फ गोल कर लिया है या फिर चुनाव आयोग पर सवाल उठाकर बड़ा दांव चला है?

राहुल गांधी का आरोप- राहुल गांधी ने एक्स पर पोस्ट में दावा किया कि महाराष्ट्र में 2019 से 2024 तक मतदाता संख्या में 31 लाख की बढ़ोतरी हुई थी, लेकिन मई 2024 से नवंबर 2024 तक केवल पांच महीनों में ही 41 लाख मतदताओं की संख्या में असामान्य वृद्धि दर्ज की गई. उन्होंने इसे ‘फर्जी मतदाता’ करार दिया और आशंका जताते हुए कहा कि बिहार में भी ऐसा हो सकता है. राहुल गांधी ने चुनाव आयोग पर सवाल उठाते हुए पूछा कि अगर कुछ छिपाने की बात नहीं है तो उनके सवालों का जवाब क्यों नहीं दिया जा रहा.

जेपी नड्डा का पलटवार

राहुल गांधी के चुनाव आयोग पर सवाल उठाने को लेकर बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने पलटवार करते हुए कहा कि,

राहुल गांधी का सोशल मीडिया पोस्ट फर्जी विमर्श गढ़ने का एक ब्लूप्रिंट है, क्योंकि वह लगातार चुनाव हारने से दुखी और हताश हैं. वह इसे चरण दर चरण इस प्रकार करते हैं. पहले चरण में कांग्रेस पार्टी अपनी हरकतों के कारण चुनाव दर चुनाव हारती है. दूसरे चरण में आत्मनिरीक्षण करने के बजाय, वह (राहुल गांधी) विचित्र षड्यंत्र रचते हैं और धांधली का रोना रोते हैं. तीसरे चरण में सभी तथ्यों और आंकड़ों की अनदेखी करते हैं और चौथे चरण में बिना सबूत के साथ संस्थाओं को बदनाम करते हैं

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लोकतंत्र को नाटक की नहीं, बल्कि…

जेपी नड्डा ने आगे लिखा, तथ्यों की अपेक्षा सुर्खियों की उम्मीद करना और बार-बार पोल खुलने के बावजूद वह (राहुल गांधी) बेशर्मी से झूठ फैलाते रहते हैं. वह ऐसा इसलिए कर रहे हैं क्योंकि बिहार में उनकी हार निश्चित है. जेपी नड्डा ने कहा लोकतंत्र को नाटक की नहीं, बल्कि सच्चाई की जरूरत है. बता दें कि इससे पहले चुनाव आयोग की ओर से भी बयान आया था कि चुनाव के फैसले पक्ष में नहीं आने के बाद ऐसे आरोप लगाना बेतुके हैं. 24 दिसंबर 2024 को ही कांग्रेस को भेजे अपने जवाब में ये सभी तथ्य सामने रखे थे, जो चुनाव आयोग की वेबसाइट पर उपलब्ध हैं. ऐसा लगता है कि बार-बार ऐसे मुद्दे उठाते हुए इन सभी तथ्यों को पूरी तरह से नजरअंदाज किया जा रहा है.

हार मानने वाले लोग ऐसी बातें करते हैं

वहीं, एनडीए ने कांग्रेस नेता के इस बयान को राहुल गांधी की हताशा और बिहार में हार की आशंका का डर बताया. केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी ने भी तंज कसते हुए कहा, हार मानने वाले लोग ऐसी बातें करते हैं. जेडीयू प्रवक्ता अभिषेक झा ने राहुल पर निशाना साधते हुए कहा कि वे ईवीएम पर सवाल उठाकर पहले से ही हार का बहाना बना रहे हैं. जबकि बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने राहुल के आरोपों को पहले ही ‘हास्यास्पद साजिश’ करार दिया और कहा कि इसमें कोई तथ्य नहीं है..

तेजस्वी यादव और लालू यादव की रणनीति को नुकसान न पहुंचा दे राहुल गांधी का बयान!

महागठबंधन का बचाव और रणनीति

जबकि, आरजेडी, कांग्रेस और वाम दलों वाले महागठबंधन ने राहुल गांधी के बयान का बचाव किया है. आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने कहा कि राहुल ने लोकतंत्र की रक्षा के लिए एक जायज सवाल उठाया है. उन्होंने कहा, जो लोग वोटरों के जनादेश को हेरफेर से हासिल करना चाहते हैं वे इन सवालों से अब बौखला गए हैं. कांग्रेस के बिहार प्रभारी राजेश कुमार ने कहा कि राहुल का बयान बिहार की जनता को सतर्क करने की कोशिश है, ताकि वे अपने मताधिकार की रक्षा करें

महागठबंधन को डिफेंसिव कर गया!

बहरहाल, राहुल गांधी का यह बयान राजनीति की जानकारो की नजर में महागठबंधन की रणनीति में राहुल का यह बयान एक दोधारी तलवार है. वरिष्ठ पत्रकार अशोक कुमार शर्मा कहते हैं कि एक ओर यह मतदाताओं में चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठाकर एनडीए के खिलाफ माहौल बना सकता है. खासकर युवाओं और अल्पसंख्यक समुदायों में. लेकिन, दूसरी ओर यह बयान महागठबंधन को डिफेंसिव भी कर गया है क्योंकि एनडीए इसे महागठबंधन की ‘हार की स्वीकारोक्ति’ के रूप में प्रचारित कर रहा है. बता दें कि यह हार का डर तब और प्रासंगिक लगने लगता है जब 2024 के लोकसभा चुनाव में महागठबंधन के बिहार में 11 सीटें जीतने और एनडीए के 29 सीटों के साथ बेहतर प्रदर्शन की बात होती है.

NDA ने राहुल गांधी के बयान को हार की स्वीकारोक्ति बताया.

चुनावी समीकरण और प्रभाव

बता दें कि बिहार में अक्टूबर-नवंबर 2025 में होने वाले विधानसभा चुनाव में एनडीए नीतीश कुमार के नेतृत्व में एकजुट होकर मैदान में है. 2024 के उपचुनाव में एनडीए ने चार में से चार सीटें जीतकर अपनी ताकत दिखाई थी, जबकि महागठबंधन को बेलागंज जैसे गढ़ में हार का सामना करना पड़ा. एक तरफ चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) का उभार और उनकी नव संकल्प रैली एनडीए को दलित और ओबीसी वोटरों में मजबूती दे रही है. वहीं, राहुल गांधी का बयान महागठबंधन के लिए जोखिम भरा हो सकता है, क्योंकि यह मतदाताओं में अविश्वास पैदा कर सकता है.हालंकि, राजनीति जानकार राहुल गांधी के आरोपों में कुछ सकारात्मक संभावनाएं भी देखते हैं.

महागठबंधन के लिए नुकसानदायक तो नहीं?

अशोक कुमार शर्मा कते हैं कि राहुल गांधी के बयान को अगर सही तरीके से पब्लिक के बीच ले जाया जाए तो यह एनडीए की कथित ‘चुनावी गड़बड़ियां” कराने की बात को महागठबंधन मुद्दा बना सकता है. कांग्रेस की ‘न्याय संवाद’ और ‘पलायन रोको, नौकरी दो’ जैसे कार्यक्रम के जरिये बिहार में अपनी पैठ बनाने में लगी है. ऐसे में राहुल गांधी का चुनाव आयोग पर सवाल उठाना एक रणनीतिक कदम हो सकता है, जो महागठबंधन को बिहार में एंटी-इनकंबेंसी और बेरोजगारी जैसे मुद्दों के साथ जोड़कर एनडीए को घेरने की कोशिश है. हालांकि, एनडीए की तीखी प्रतिक्रिया और राहुल के बयान को “हार की स्वीकारोक्ति” के रूप में पेश करना महागठबंधन के लिए नुकसानदायक हो सकता है.

Credits To Live Hindustan

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