मुंह नहीं नाक से संगीत बजाते हैं महेंद्र, टैलेंट ऐसा कि राष्ट्रीय विजेता बन गए
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Nose Flute Player India: गोलाघाट के महेंद्र शैकिया ने नाक और मुंह से डफ और बांसुरी बजाकर सबको चौंका दिया. 1998 से लगातार मेहनत कर वे राष्ट्रीय मंच पर प्रथम स्थान प्राप्त कर चुके हैं, और असम का गौरव बने हुए हैं….और पढ़ें

महेंद्र शैकिया
गोलाघाट के काकड़ोंगा इलाके के महेंद्र शैकिया आज एक ऐसी पहचान बन गए हैं, जिन पर पूरा गांव गर्व करता है. बचपन से ही सांस्कृतिक सोच से जुड़े महेंद्र ने अपनी मेहनत और लगन से गांव बरनामघर से लेकर बिहू हुचोरी टीम तक हर कार्यक्रम को खास बना दिया. गांव के हर छोटे-बड़े आयोजन में महेंद्र की मौजूदगी एक अहम हिस्सा होती है. उनकी प्रतिभा ने उन्हें गांव की सीमाओं से बाहर देशभर में पहचान दिलाई है.
नाक और मुंह से डफ बजाकर मचाया धमाल
अक्सर हम डफ जैसे वाद्ययंत्र को केवल मुंह से बजाते हुए देखते हैं, लेकिन महेंद्र शैकिया ने इस साधारण कला को असाधारण बना दिया. महेंद्र न केवल मुंह से बल्कि अपनी नाक से भी डफ बजाते हैं. यही नहीं, वह बैल के सींग से बनी बांसुरी को भी नाक और मुंह दोनों से बजाने में माहिर हैं. उनकी इस अनोखी कला ने लोगों को हैरान कर दिया है और उनकी प्रतिभा को खास पहचान दिलाई है.
1998 से लगातार कर रहे हैं मेहनत
महेंद्र शैकिया ने 1998 से अपनी कला को निखारने का सफर शुरू किया था. तब से लेकर आज तक उन्होंने अपनी मेहनत और लगन से न केवल अपने गांव बल्कि पूरे असम का नाम रोशन किया है. उनकी साधना और समर्पण का ही नतीजा है कि वह भारत के 13 राज्यों में असम का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं.
राष्ट्रीय मंच पर भी पाया प्रथम स्थान
दिल्ली में आयोजित एक बड़े सांस्कृतिक कार्यक्रम में महेंद्र ने अपनी कला का ऐसा प्रदर्शन किया कि सब दंग रह गए. लगभग दो घंटे तक बिना थके नाक से डफ बजाते हुए उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर प्रथम स्थान हासिल किया. यह उनके लिए ही नहीं, बल्कि पूरे असम के लिए गर्व का पल था. उनकी यह जीत दिखाती है कि लगन और हुनर से किसी भी मंच को जीता जा सकता है.
गांववालों के लिए बने गर्व का कारण
महेंद्र शैकिया की अनोखी प्रतिभा ने न केवल उन्हें प्रसिद्धि दिलाई है, बल्कि उनके गांव और क्षेत्र के लोगों को भी गर्व महसूस कराया है. क्षेत्र के लोग मानते हैं कि देश में कई तरह के लोक वाद्य हैं, लेकिन महेंद्र जैसा हुनर बहुत कम देखने को मिलता है. उनकी कला ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि असली प्रतिभा गांवों से भी निकलती है, बस उसे पहचानने की जरूरत होती है.
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