क्या अदालतों और नौकरशाही में SC-ST, ओबीसी और EBC की भागीदारी शून्य है?

नई दिल्ली. क्या भारत की अदालतों, नौकरशाही और कॉरपोरेट क्षेत्र में अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST), अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) और आर्थिक रूप से पिछड़ा वर्ग (EBC) की भागीदारी वाकई शून्य है? अगर नहीं, तो कितनी है? कांग्रेस नेता राहुल गांधी बिहार चुनाव से पहले बार-बार जातीय जनगणना की बात क्यों उठा रहे हैं? केंद्र सरकार के जातीय जनगणना कराने के फैसले के बाद, अब राहुल गांधी कह रहे हैं कि अदालतों, नौकरशाही और कॉरपोरेट क्षेत्र में इन वर्गों की भागीदारी शून्य है. राहुल गांधी ने हाल ही में दरभंगा में इस बात को जोर-शोर से उठाया है. भारत की इस कहानी को Grok से समझते हैं.

पहले अदालतों की बात करें. सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट्स में जजों की नियुक्ति को देखें तो तस्वीर धुंधली है. 2023 तक सुप्रीम कोर्ट के 33 जजों में से केवल 1 जज अनुसूचित जाति से थे और कोई भी अनुसूचित जनजाति से नहीं था. हाई कोर्ट्स में स्थिति थोड़ी बेहतर है, लेकिन 2022 के एक अध्ययन के अनुसार, 25 हाई कोर्ट्स में कुल 1,098 जजों में से केवल 2.8% एससी, 1.2% एसटी और लगभग 12% ओबीसी थे. ओबीसी की यह संख्या भी अनुमानित है, क्योंकि सरकार के पास जातिगत डाटा नहीं है.

क्या भारत में एससी-एसटी और ओबीसी की भागीदारी कम है?
ईबीसी का तो कोई अलग आंकड़ा ही नहीं है. क्या यह शून्य है? ऐसा नहीं हो सकता. लेकिन क्या यह उनकी जनसंख्या के अनुपात में है? बिल्कुल नहीं. 2011 की जनगणना के अनुसार, एससी 16.6%, एसटी 8.6% और ओबीसी (अनुमानित) 52% हैं. फिर भी, देश की सबसे बड़ी अदालतों में उनकी हिस्सेदारी उंगलियों पर गिनी जा सकती है.

क्या गवाही देते हैं ये आंकड़े?
भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) में 2021 के आंकड़ों के अनुसार, कुल 5,200 अधिकारियों में से 13.2% एससी, 7.8% एसटी और 15.4% ओबीसी थे. यह आरक्षण नीति का नतीजा है, जो एससी को 15%, एसटी को 7.5% और ओबीसी को 27% कोटा देती है. लेकिन वरिष्ठ पदों जैसे कैबिनेट सचिव, मुख्य सचिव या केंद्रीय मंत्रालयों के सचिव पर स्थिति बदल जाती है. 2020 में, केंद्रीय सचिव स्तर के 89 पदों में से केवल 4 पर एससी और 3 पर एसटी अधिकारी थे. ओबीसी की हिस्सेदारी? मुश्किल से 10%. ईबीसी की बात करें, तो 10% आरक्षण 2019 में लागू हुआ, लेकिन इसका प्रभाव अभी तक नगण्य है. बिहार जैसे राज्यों में, जहां ओबीसी और ईबीसी की आबादी 63% है, सरकारी नौकरियों में उनकी हिस्सेदारी 1.75% (पिछड़ा वर्ग) और 1.13% (एससी) है.

कॉरपोरेट क्षेत्र इतना अलग क्यों?
कॉरपोरेट क्षेत्र की कहानी और निराशाजनक है. एक ट्वीट में किसी ने सवाल उठाया, ‘भारत की 348 अरबपति कंपनियों में कितनी एससी, एसटी, ओबीसी के स्वामित्व में हैं? शायद एक भी नहीं.’ यह अतिशयोक्ति नहीं है. 2022 के फोर्ब्स इंडिया रिच लिस्ट में शीर्ष 100 में कोई भी एससी, एसटी या ओबीसी उद्यमी नहीं था. कॉरपोरेट बोर्डरूम में स्थिति देखें, तो 2023 में फॉर्च्यून 500 कंपनियों के भारतीय बोर्ड में केवल 4% निदेशक एससी/एसटी पृष्ठभूमि से थे और ओबीसी की हिस्सेदारी 10% से कम थी. ईबीसी का कोई डाटा नहीं है, क्योंकि कॉरपोरेट क्षेत्र में आर्थिक पिछड़ेपन का कोई मापदंड नहीं है.

संस्थानों में भागीदारी

अदालतें:
सुप्रीम कोर्ट (2023): 33 जजों में 1 एससी, 0 एसटी, ओबीसी का कोई स्पष्ट डाटा नहीं
हाई कोर्ट्स (2022): 1,098 जजों में 2.8% एससी, 1.2% एसटी, 12% ओबीसी

नौकरशाही:
IAS (2021): 5,200 अधिकारियों में 13.2% एससी, 7.8% एसटी, 15.4% ओबीसी
वरिष्ठ पद (2020): 89 सचिव पदों में 4 एससी, 3 एसटी, 10% ओबीसी

कॉरपोरेट क्षेत्र:
फोर्ब्स इंडिया रिच लिस्ट (2022): शीर्ष 100 में 0 एससी/एसटी/ओबीसी
फॉर्च्यून 500 बोर्ड (2023): 4% एससी/एसटी, 10% से भी कम ओबीसी

जनसंख्या के आंकड़े (2011 जनगणना)
एससी: 16.6%
एसटी: 8.6%
ओबीसी: 52% (अनुमानित)

Credits To Live Hindustan

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