कोकीन को पीछे छोड़ रहा पिंक ड्रग, म्यांमार है इसका एपिसेंटर, जानिए पूरा माजरा
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NARCO TERROR: म्यांमार में धडल्ले से ड्रग का करोबार होता है. जमीन से लेकर समंदर के रास्ते दुनिया भर में ड्रग सप्लाई की कोशिशें होती है. सबसे ज्यादा ड्रग मेटाफेटामाइन म्यांमार में भारतीय सीमा के करीब तैयार होता …और पढ़ें

ड्रग्स के कारोबार पर भारत का कड़ा वार
हाइलाइट्स
- म्यांमार से भारत में पिंक ड्रग की तस्करी बढ़ी.
- कोस्ट गार्ड और एटीएस ने 300 किलोग्राम नारकोटिक्स पकड़ी.
- म्यांमार से ड्रग की तस्करी में समुद्री रास्ते का उपयोग.
NARCO TERROR: ड्रग्स की तस्करी की रोकथाम के लिए सुरक्षा एजेंसियां हमेशा से एक्टिव है. सोमवार को दो जगह से एक ही तरह की ड्रग के खेप बरामद हुई. कोस्टगार्ड और गुजरात एटीएस ने मिलकर 300 किलोग्राम से ज्यादा नारकोटिक्स पकड़ी. 12-13 अप्रैल 2025 की रात को कोस्ट गार्ड ने गुजरात एटीएस के साथ मिलकर समुद्र में एक खुफिया जानकारी पर ऑपरेशन को अंजाम दिया. जब्त की गई नारकोटिक्स जिनकी अनुमानित कीमत लगभग 1800 करोड़ रुपये है. वहीं असम रायफल ने मिजोरम के ल्वांगतलाई इलाके से 54 करोड़ रूपये की 1,80,000 टैबलेट बरामद की. ठीक एक दिन पहले ही 13 अप्रैल को DRI यानी डयारेक्टर ऑफ रिवेन्यू इंटेलिजंस ने मिजोरम में ही 52.67 करोड़ रूपये कीमत की 52.67 किलों मेटेफेटामाइन टैबलेट पकड़ी है. DRI ने जनवरी से अब तक कुल 148.50 किलों मेटाफेटामाइन टैबलेट को उत्तर पूर्व के राज्यों से सीज किया है. पिछले कुछ समय से मेटाफेटामाइन बरामदगी किसी और ड्रग से कहीं ज्यादा हो रही है. उसके वजह है इसकी कीमत.
कोकीन से है सस्ती है मेथ
कोस्ट गार्ड, असम रायफल ने जो ड्रग पकड़ी है उसे अलग अलग नाम से जाना जाता है. याबा, पिंक ड्रग, आइस, क्रिस्टल मेथ या मेटाफेटामाइन भी कहा जाता है. गोली की शक्ल में इस गोली का रंग गुलाबी होता है जिसकी वजह से इसे पिंक ड्रग के नाम से जाना जाता है. यह गोली म्यांमार के रास्ते भारत के बड़े शहरो तक पहुंचती है. इस ड्रग में मुनाफा काफी ज्यादा है. एक गोली म्यांमार में महज 10 रुपये में बिकती है वो मिजोरम में आकर 300 रूपये और दिल्ली, मुम्बई जैसे अन्य महानगरों तक जाते-जाते इसकी कीमत 2000 रूपये से ज्यादा हो जाती है. म्यांमार की ड्रग रूट में भारत, लाओस, थाईलैंड, मलेशिया और इंडोनेशिया शामिल हैं और यहीं से इनकी तस्करी की जाती है. इसकी डिमांड सबसे ज्यादा इसलिए है क्योंकि इसकी कीमत कोकेन से कम है. 1 ग्राम कोकेन की कीमत अंतर्राष्ट्रीय बाजार में 120 से 200 डॉलर के करीब बताई जाती है. जबकि मेथ की टैबलेट कुछ हजार में मिल जाती है. कहा तो यह भी जाता है कि हिटलर अपने जमीन के रास्ते जानवरों के जरिए किए जाने वाले मूवमेंट के दौरान यही मेटाफेटामाइन खिलाया करता था. ताकी वह नशे में बिना थके लंबी लंबी दूरी तय कर सके.
लैंड रूट के बाद सी रूट से की जा रही है पिंक ड्रग की तस्करी
पहले यह ड्रग म्यांमार के जरिए जमीन के रास्ते भारत भेजी जाती रही है. मिजोरम में इसके मामले सबसे ज्यादा है. चूंकि मिजोरम एक ड्राय स्टेट है और वहां के लोगों नशे के लिए इसी ड्रग का ज्यादा इस्तेमाल करते हैं. म्यांमार के रास्ते आसानी से यह ड्रग आ जाती है और सस्ते में मिल जाती है. म्यांमार में जारी मौजूदा हालात के चलते वहां से बड़ी संख्या में ड्रग की तस्करी सबसे बड़ी आय का साधन है. जब से भारत म्यांमार सीमा पर सुरक्षा बलों ने सख्ती बढ़ाई तब से म्यांमार में ऑपरेट करने वाले संगठनों के लिए जमीन के रास्ते के साथ साथ समुद्र के जरिए भी ड्रग की तस्करी का नया तरीक़ा निकाला है. पिछले साल कोस्ट गार्ड ने अंदमान निकोबार के पास पहली बार 6500 किलों मेटा ड्रग पकड़ी थी.
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