कनाडा ने अच्छा नहीं किया… G7 समिट में भारत को न बुलाकर कर दी बड़ी गलती

चंद दिनों बाद दुनिया के सात सबसे ताकतवर देशों की मीटिंग यानी G7 समिट हो रही है. लेकिन हैरानी की बात ये है कि इस बार भारत को उसमें बुलाया ही नहीं गया. मतलब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को G7 की मेज पर नहीं देखा जाएगा. कनाडा ने यह फैसला किया है, क्योंकि वही इस समिट की मेजबानी कर रहा है. अब सवाल ये है कि भारत जैसे तेजी से उभरते देश को इस अहम मंच से दूर क्यों रखा गया? क्या ये सिर्फ एक छोटा-सा ‘निमंत्रण’ नहीं भेजने का मामला है या इसके पीछे कुछ और चल रहा है?
भारत को इससे क्या फर्क पड़ेगा?
G7 समिट एक बड़ा ग्लोबल मंच है. अमेरिका, ब्रिटेन, जापान, फ्रांस, जर्मनी, इटली और कनाडा इसमें शामिल हैं. दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएं यहां पर बैठकर अहम फैसले लेती हैं. क्लाइमेट चेंज, ग्लोबल सिक्योरिटी, ट्रेड और टेक्नोलॉजी पर पॉलिसी बनती है. पिछले कुछ वर्षों में भारत को हर बार बतौर ‘स्पेशल गेस्ट’ बुलाया जाता रहा है. 2023 में ही पीएम मोदी जापान के हिरोशिमा में हुए G7 समिट में शामिल हुए थे. वहां भारत को ग्लोबल साउथ की आवाज के तौर पर सुना गया था. इस बार अगर भारत उस टेबल पर नहीं होगा तो कई अहम मुद्दों पर भारत की राय शामिल नहीं होगी और यह भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि के लिए झटका हो सकता है.
कनाडा ने पीएम मोदी को G7 में न बुलाकर जो किया है, वो ना सिर्फ एक डिप्लोमैटिक मिसटेक है, बल्कि खुद कनाडा के लिए नुकसानदेह भी साबित हो सकता है. भारत भले ही G7 का स्थायी सदस्य न हो, लेकिन उसकी जरूरत अब उस टेबल पर हर देश को है. ऐसे में राजनीति या विवाद के चलते इतने अहम साझेदार को नजरअंदाज करना एक ऐसा कदम है जिसका खामियाजा कनाडा को कई मोर्चों पर उठाना पड़ सकता है. भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, जिसकी आवाज अब दुनिया अनदेखा नहीं कर सकती. G20 की मेजबानी कर चुका भारत अब ग्लोबल डिस्कशन में एक मजबूत खिलाड़ी है. भारत से व्यापार और इमिग्रेशन पर कनाडा की निर्भरता भी कम नहीं है. खासकर जब वहां की यूनिवर्सिटीज में पढ़ने वाले स्टूडेंट्स में सबसे ज्यादा भारतीय ही हैं. अगर भारत नाराज हो गया तो कनाडा के लिए ट्रेड, एजुकेशन और डिप्लोमेसी तीनों मोर्चों पर दिक्कतें बढ़ सकती हैं.
क्या पहले भी ऐसा हुआ है?
हां, कूटनीतिक मंचों से किसी देश को दूर रखना नया नहीं है. 2014 में रूस को यूक्रेन के क्रीमिया पर कब्जे के बाद G8 से बाहर कर दिया गया था. लेकिन भारत का मामला अलग है, वो G7 का मेंबर नहीं है, लेकिन हर साल ‘खास मेहमान’ के रूप में बुलाया जाता रहा है. इस बार न बुलाना सिर्फ एक ‘डिप्लोमैटिक भूल’ नहीं, बल्कि रिश्ते बिगड़ने की एक सार्वजनिक घोषणा भी है.
विदेश मामलों के जानकारों की मानें तो कनाडा का यह कदम “भावनात्मक और जल्दबाजी में लिया गया फैसला” लगता है. वो मानते हैं कि जब भारत जैसे देश से रिश्ता ठंडा हो, तो उसे सुधारने की कोशिश होनी चाहिए, न कि और खराब करने की. इससे न केवल कनाडा की ग्लोबल पोजिशनिंग कमजोर होती है, बल्कि G7 जैसे मंच की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठता है.
भारत की रणनीतिक स्थिति
आज भारत सिर्फ एक विकासशील देश नहीं, बल्कि एक ग्लोबल लीडर के तौर पर उभर रहा है. क्लाइमेट चेंज से लेकर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और वैश्विक व्यापार तक, हर मुद्दे पर भारत की भागीदारी अब जरूरी मानी जाती है. कई देश भारत को चीन के मुकाबले एक भरोसेमंद विकल्प के तौर पर देख रहे हैं. ऐसे में G7 जैसे मंच से भारत को अलग रखना दूरदर्शिता की कमी मानी जा रही है.
Credits To Live Hindustan