जनाब! अजनबी लोग हैं.. हिंदी बोलते हैं पर अपने नहीं लगते… एक्शन में पुलिस

Delhi Crime News: यह घटना 15 अप्रैल की है. दक्षिण-पश्चिम दिल्ली के साउथ कैंपस थाने में रात के आठ बज रहे थे. एसएचओ रवींद्र कुमार वर्मा की टेबल पर रखा मोबाइल फोन एक बार बजा… फिर दूसरी बार… और फिर एक तीसरी घंटी बजते ही एसएचओ रवींद्र कुमार वर्मा ने गौर से स्क्रीन की तरफ देखा. स्क्रीन पर एक जाना पहचाना सा नंबर नजर आया रहा था.
फोन उठाते ही सामने से आई आई- जनाब, सत्यानिकेतन मार्केट में कुछ अजनबी लोगों की आवाजाही बढ़ गई है… यह सभी पहचान छुपा रहे हैं… हिंदी बोलना चानते हैं पर अपने देश के नहीं लगते हैं… हो सकता है, कुछ बड़ा हो. आवाज़ धीमी थी, लेकिन सच्चाई की सनसनी उसमें साफ झलक रही थी. इंस्पेक्टर वर्मा ने बिना एक पल गंवाए एसीपी गरिमा तिवारी को जानकारी दी.
एसीपी गरिमा तिवारी से आदेश मिला- टीम तैयार करो, ये ऑपरेशन खामोशी से होगा. न कोई हो-हल्ला, न कोई शोर. टीम बनी, जिसमें सब इंस्पेक्टर सुंदर योगी, हेड कॉन्स्टेबल मनोहर, कांस्टेबल धन्ना राम और दो स्पेशन ट्रेंड ऑफिसर्स को शामिल किया गया. एक एक कर पुलिस की गाडि़यां बिना सायरन के थाने से निकलना शुरू हुईं और पहुंच गईं सत्यानिकेतन इलाके में.
सत्यानिकेतन इलाके में दाखिल होते ही पुलिस के हाथों पहला संदिग्ध लग गया. पूछताछ हुई तो आंखों में डर और होंठों पर झूठ की परतें साफ दिखीं. लेकिन जैसे ही टीम ने सख्ती दिखाई, वो बिखर गया. उसने बताया कि उसका नाम रबीउल इस्लाम है और वह बांग्लादेशी है. जब उससे भारत आने की वजह पूछी गई, तो उसने बताया कि वह 2012 में त्रिपुरा बॉर्डर से आया था… शादी करके वापस आया… मेरा परिवार यहीं है… कुछ और लोग भी हैं… कुतुब के पास…
पुलिस टीम बिना समय गंवाए उसके बताए पते पर निकल पड़ी. उसकी निशानदेही पर टीम ने एक-एक कर सात और लोगों को गिरफ्तार किया. जिनकी पहचान सीमा, अब्राहम, पापिया खातून, सादिया सुल्ताना, सुखासिनी, आर्यन, रिफात आरा मयना के तौर पर हुई. इनमें से कोई ब्यूटी पार्लर का कोर्स कर रहा था, कोई घरेलू सहायिका थी का काम.
पुलिस की पड़ताल में यह भी पता चला कि अब तक सभी अपनी पहचान बदल चुके थे. सभी के पास फर्जी आधार कार्ड मौजूद था और उसी के दम पर नौकरी में थे. यह मामला यहीं खत्म नहीं हुआ पुलिस ने जैसे-जैसे गहराई से पूछताछ की, कई चौंकाने वाली बातें सामने आईं. पता चला कि रबीउल इस्लाम पर बांग्लादेश में मानव तस्करी का केस दर्ज था.
रवीउल इन लोगों को भारत लाने में बॉर्डर के दलालों की भूमिका था. इनमें से कई लोग फर्जी दस्तावेज़ों के बल पर किशनगढ़, कुतुब मीनार, मोती बाग जैसे क्षेत्रों में छोटे-छोटे कमरों में वर्षों से रह रहे है. इस खुलासे के बाद इन सभी को एफआरआरओ ऑफिस ले जाया गया. डिपोर्टेशन की प्रक्रिया तेजी से शुरू हुई और उसी शाम डिपोर्टेशन सेंटर भेज दिया गया.
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