जिस जाति जनगणना का नेहरू ने किया था विरोध, उसे क्यों राहुल ने बनाया मुद्दा

Caste Census: आजादी के बाद भारत में पहली बार जाति जनगणना करायी जाएगी. केंद्र की मोदी सरकार ने बुधवार को जाति जनगणना कराने का फैसला लिया. इसे मूल जनगणना के साथ ही कराया जाएगा. हालांकि जनगणना की प्रक्रिया पूरी होने में एक साल का समय लगेगा. ऐसे में जनगणना के अंतिम आंकड़े 2026 के अंत या 2027 की शुरुआत में मिल सकेंगे. देश में पिछली जनगणना 2011 में हुई थी. इसे हर 10 साल में कराया जाता है. लेकिन 2021 में कोविड-19 महामारी के कारण अगली जनगणना नहीं हो सकी थी.
कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दल जाति जनगणना कराने की मांग करते रहे हैं. ऐसे में कयास लगाए जा रहे हैं कि जाति जनगणना की शुरुआत सितंबर में की जा सकती है. इसी साल के आखिर में बिहार विधानसभा के चुनाव होने हैं. माना जा रहा है कि मोदी सरकार ने इसी मौके को ध्यान में रखते हुए इसे कराने का फैसला किया है. दरअसल जब 1931 में पहली और आखिरी बार जातिगत जनगणना हुई तो कांग्रेस ने इसे ब्रिटिश सरकार का भारतीय समाज को तोड़ने का षडयंत्र करार दिया था. द्वितीय विश्वयुद्ध के कारण साल 1941 में जनगणना नहीं हो पायी. लेकिन जब आजाद भारत में पहली जनगणना हुई तो इसमें जातियों के आधार पर जनगणना की मांग ठुकरा दी गई.
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कांग्रेस ने बनाया इसे बड़ा चुनावी मुद्दा
तो आखिर जाति जनगणना को लेकर कांग्रेस इतनी उतावली क्यों हो रही है. देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इसे खारिज कर दिया था. इंदिरा इंदिरा और राजीव गांधी भी जब प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने मंडल आरक्षण योजना को ठंडे बस्ते में डाल दिया. तो फिर राहुल गांधी जाति जनगणना की इतने जोरशोर से मांग क्यों कर रहे हैं, जिसका उनके परिवार ने विरोध किया था? साल 2023 के अक्टूबर महीने में जिस दिन चुनाव आयोग ने पांच राज्यों के लिए चुनाव कार्यक्रम की घोषणा की. उसी दिन कांग्रेस कार्यसमिति ने जाति को अपना सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा बनाते हुए एक प्रस्ताव पारित किया.
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‘बेटे ने पिता की गलती को सुधारा’
कांग्रेस पार्टी ने कहा कि अगर वह 2024 में सत्ता में आती है तो देश भर में जाति जनगणना कराएगी और नौकरियों और उच्च शिक्षा में जाति आधारित आरक्षण की सीमा को 50 फीसदी से आगे बढ़ाएगी. कांग्रेस के लिए जाति एक पेचीदा मुद्दा रहा है. सालों तक टालमटोल करने के बाद, पार्टी में यह भावना है कि ‘बेटे ने पिता की गलती को सुधार दिया है.’ यह कर्नाटक विधानसभा चुनावों के लिए प्रचार करते समय राहुल गांधी के नारे “जितनी आबादी, उतना हक” (जनसंख्या के हिसाब से कोटा अधिकार) के बारे में है, जिसमें पार्टी ने जीत हासिल की थी.
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जवाहरलाल नेहरू ने किया था विरोध
जाति की राजनीति पर राहुल गांधी का आक्रामक रुख, आजादी के बाद से इस संवेदनशील मुद्दे पर उनकी पार्टी के रुख से अलग है. दरअसल, उनकी पार्टी और उनका राजनीतिक परिवार हमेशा जाति संबंधी बयानबाजी से दूर रहा है. 1951 में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने जाति जनगणना का विरोध किया था. नेहरू ने 27 जून, 1961 को लिखा था, “मैं किसी भी तरह के आरक्षण को नापसंद करता हूं, खास तौर पर नौकरी में. मैं ऐसी किसी भी चीज के खिलाफ कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करता हूं जो अकुशलता और दोयम दर्जे के मानकों को बढ़ावा देती है.”
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इंदिरा और राजीव भी थे खिलाफ
इंदिरा गांधी ने जनता पार्टी सरकार द्वारा 1977 में गठित मंडल आयोग की रिपोर्ट को ठंडे बस्ते में डाल दिया. हालांकि वह 1980 में ही सौंप दी गई थी. इसके जवाब में उन्होंने 1980 में जाति आधारित पार्टियों से मुकाबला करने के लिए एक नारा गढ़ा – “न जात पर न पात पर, मुहर लगेगी हाथ पर.” राजीव गांधी ने भी मंडल आयोग की रिपोर्ट को नजरअंदाज किया था. जब तत्कालीन केंद्र सरकार ने इसे लागू किया तो स्वर्गीय प्रधानमंत्री ने इसे देश को जाति के आधार पर बांटने की कोशिश बताया था. 6 सितंबर, 1990 को लोकसभा में अपने भाषण के दौरान राजीव गांधी ने कहा, “प्रधानमंत्री (वीपी सिंह) में खड़े होकर यह कहने की हिम्मत नहीं है कि वह जातिविहीन समाज में विश्वास करते हैं या नहीं. यह बहुत दुखद है… राजा साहब एक बार फिर हमारे समाज में जाति को शामिल कर रहे हैं. वह इस कदम से और जाति के मुद्दे पर अपनी बात पर अड़े रहकर यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि जाति खत्म न हो.”
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इसे न्याय देने का तरीका मानते हैं राहुल
भले ही दिवंगत प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने जातिविहीन समाज पर जोर दिया था. आज हमारा लक्ष्य जातिविहीन समाज होना चाहिए. हमें इस बारे में स्पष्ट होना चाहिए. लेकिन, लगभग 34 साल बाद उनके बेटे राहुल गांधी हर मंच पर और हर दिन जाति का हवाला दे रहे हैं. यहां तक कि पत्रकारों सहित लोगों से उनकी जाति के बारे में पूछ रहे हैं. राहुल गांधी और उनकी टीम ने कई बार कोशिश करने के बाद आखिरकार जाति की राजनीति पर ध्यान केंद्रित किया है. जिसके बारे में उनका मानना है कि भाजपा के जादू को तोड़ने और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हराने का यही एकमात्र तरीका है. कांग्रेस नेता जाति जनगणना की मांग कर रहे हैं और दावा कर रहे हैं कि न्याय प्रदान करने का यही सही तरीका है. वह जातिगत भेदभाव के आरोपों के साथ सरकार पर तीखे हमले कर रहे हैं.
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