ISRO के गगनयान पर कैसा चल रहा काम? एस्ट्रोनॉट अंगद ने बताई तैयारी- Exclusive

‘जब मुझे यह अवसर मिला, तो मैं बहुत उत्साहित था कि मुझे इस ग्रह की सबसे अच्छी नौकरी के लिए चुना गया.’ भारतीय वायु सेना के टेस्ट पायलट अंगद प्रताप के लिए, गगनयान के चार अंतरिक्ष यात्रियों में से एक के रूप में चुना जाना सिर्फ करियर की उपलब्धि नहीं, बल्कि यह वह क्षण था जब एक अरब से अधिक लोगों की उम्मीदों और सपनों का वह प्रतीक बन गए.

‘अभी भी यह अहसास पूरी तरह से नहीं हुआ है.’ नई दिल्ली में ग्लोबल स्पेस एक्सप्लोरेशन कॉन्फ्रेंस (GLEX)-2025 के दौरान कैप्टन अंगद प्रताप ने यह बात कही. वहां वे धैर्यपूर्वक बैठे लोगों की लंबी कतार के लिए ऑटोग्राफ साइन कर रहे थे. इस दौरान बच्चे नोटबुक पकड़े हुए और युवा जैकेट्स बढ़ाते हुए उत्सुकता से इंतजार कर रहे थे कि वे उन चार लोगों में लोगों से एक से मिल सकें जो भारत के लिए इतिहास रचने वाले हैं.

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने अपने 50 साल के इतिहास में कभी भी मानव अंतरिक्ष मिशन नहीं किया. इसलिए जब गगनयान मिशन 2027 में लॉन्च होगा, तो यह पहली बार होगा जब भारतीय अंतरिक्ष यात्री स्वदेशी रॉकेट और लॉन्च पैड से अंतरिक्ष में जाएंगे और सुरक्षित धरती पर लौटेंगे.

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ग्रुप कैप्टन अंगद प्रताप, ग्रुप कैप्टन प्रशांत बालकृष्णन नायर, ग्रुप कैप्टन अजीत कृष्णन और ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला इस 20,000 करोड़ रुपये के महत्वाकांक्षी मिशन के लिए नामित चार अंतरिक्ष यात्री हैं.

सेना की ड्यूटी से अंतरिक्ष तक का सफर

‘यह चुनौतीपूर्ण है, लेकिन रोमांचक भी,’ कैप्टन अंगद प्रताप एक छोटे से विराम के बाद कहते हैं.

‘सेना की ज़िंदगी अपने आप में कठिन होती है. शुरू से ही जो गुण हम सेना में सीखते हैं, वे अंतरिक्ष यात्री बनने के सफर में बहुत काम आते हैं. एक फाइटर पायलट के रूप में हम जिन मशीनों को उड़ाते हैं, उन्हें हम बहुत गहराई से समझते हैं, और युद्ध जैसे हालात में उन्हें ऑपरेट करना भी जानते हैं. यही अनुभव हमें अंतरिक्ष की तैयारी में एक बढ़त देता है.’

लेकिन अंतरिक्ष की अनिश्चितता और विशालता, इससे भी कहीं ज़्यादा तैयारी मांगती है… सिर्फ एक क्षेत्र में नहीं, कई क्षेत्रों में दक्षता ज़रूरी है.

कैप्टन अंगज बड़ी सहजता से कहते हैं, ‘आपको एक ही समय में कई भूमिकाओं को निभाना पड़ता है. एक दिन आप पढ़ाई कर रहे होते हैं, अगले दिन शारीरिक प्रशिक्षण कर रहे होते हैं. उसके बाद मनोवैज्ञानिक और व्यवहारिक ट्रेनिंग भी होती है. यह एक लगातार चलने वाली चुनौती है. सिर्फ एक बार स्पेस में जाना ही आपको अंतरिक्ष यात्री नहीं बनाता… असली यात्रा उसके बाद शुरू होती है.’

एक अरब सपनों का भार…

भारत जैसे स्पेस मिशन पर काम कर रहे देश के लिए, गगनयान एक ऐतिहासिक मोड़ है. यह मिशन उस दिन के लगभग 40 साल बाद हो रहा है, जब राकेश शर्मा पहले भारतीय के रूप में सोवियत यूनियन के ‘सोयुज़’ स्पेसक्राफ्ट में अंतरिक्ष गए थे.

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कैप्टन अंगद मुस्कुराते हुए कहते हैं, ‘मैं हमेशा खुद को याद दिलाता हूं कि मैं ISRO के वैज्ञानिकों, तकनीशियनों, इंजीनियरों और उन सभी लोगों का प्रतिनिधित्व करता हूं, जिन्होंने इस मिशन में योगदान दिया है… चाहे वे शैक्षणिक संस्थान हों या उद्योग. जब हम अंतरिक्ष जाते हैं, तो उनके सपनों को अपने साथ लेकर जाते हैं. मुझे लगता है कि कुछ सपनों का भार ‘शुक्स’ (ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला) अपने अगले मिशन (Axiom Mission-4) में लेकर जाएंगे. मुझे इस मिशन पर गर्व है और खुशी भी, कि हम चारों साथ हैं — शुभांशु, नायर और कृष्णन के साथ ये सफर वाकई सम्मान की बात है.’

तनाव के पल

भारत की योजना है कि अपने सबसे भारी रॉकेट LVM Mk3 से तीन अंतरिक्ष यात्रियों को लोअर अर्थ ऑर्बिट (LEO) यानी पृथ्वी से लगभग 400 किलोमीटर दूर की कक्षा में कुछ दिनों के लिए भेजा जाएगा और फिर सुरक्षित रूप से वापस लाया जाएगा.

‘जब मुझे यह मौका मिला, तो मैं बहुत उत्साहित था. यह यात्रा वास्तव में आपको एक इंसान के तौर पर बदल देती है,’ वे कहते हैं.

परिवार की चिंता के बारे में कैप्टन अंगद कहते हैं, ‘मुझे अभी किसी मिशन के लिए निश्चित रूप से नामित नहीं किया गया है, लेकिन जब किसी को मिशन के लिए तय कर दिया जाता है, तारीख मिल जाती है, और जाने की पुष्टि हो जाती है — तब ही असली एहसास होता है. वह पल अभी आया नहीं है.’

आगे की राह

गगनयान मिशन पहले भारत की आजादी के 75वें वर्ष के अवसर पर लॉन्च होने वाला था, लेकिन अब इसके 2027 में लॉन्च होने की योजना है — इस शर्त पर कि अगले दो वर्षों में तीन बिना-क्रू वाले और दो क्रू मिशन सफलतापूर्वक पूरे किए जाएं. इस साल पहला बिना-क्रू वाला ऑर्बिटल टेस्ट लॉन्च किया जाएगा.

कैप्टन अंगद अपनी बात खत्म करते हैं, ‘समयसीमा थोड़ी खिंच जाती है, लेकिन हम चारों बहुत भाग्यशाली रहे हैं. फरवरी 2024 में हमने अपनी ट्रेनिंग पूरी की और प्रधानमंत्री की तरफ से हमें ‘स्पेस विंग्स’ प्रदान किए गए. यह मायने नहीं रखता कि हम में से कौन पहले स्पेस में जाएगा- असली बात ये है कि अब एक भारतीय अंतरिक्ष में जाएगा. यह भारत के लिए एक नया मोड़ है. यही भविष्य है. और यह कई और लोगों के लिए रास्ता खोलेगा.’

Credits To Live Hindustan

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