ISI ने बदला जासूसी पैटर्न, न सोशल स्टेटस देखा, न पढ़ाई!चाहिए थी सिर्फ जानकारी

नई दिल्ली. पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI का भारत में जासूसी का खेल कोई नया नहीं है. जहां हालिया घटनाओं में आम नागरिकों को निशाना बनाया गया है, वहीं बीते वर्षों में कई ऐसे रसूखदार और जिम्मेदार पदों पर बैठे लोग ISI के जाल में फंसे. जिन्होंने अपनी लालच या कमजोरी के चलते देश की सुरक्षा से खिलवाड़ किया. ये हैं ISI के जाल में फंसे 5 पुराने ‘हाई-प्रोफाइल’ मामले:
कविता रॉय (भारतीय नौसेना में सिविलियन कर्मचारी, विशाखापत्तनम): 2019 में ISI की महिला एजेंट के संपर्क में आई. हनीट्रैप के जरिए नेवी मूवमेंट्स और सबमरीन की जानकारी लीक की.
सुमित कुमार (BSF जवान, पंजाब बॉर्डर): 2018 में पकड़ा गया जब वह सीमा की पेट्रोलिंग डिटेल्स और लोकेशन व्हाट्सएप पर भेज रहा था.
के. के. पटेल (ISRO ठेके पर काम करने वाला तकनीकी स्टाफ): 2016 में संवेदनशील सैटेलाइट योजनाओं से जुड़े दस्तावेज लीक करने के आरोप में पकड़ा गया.
रवींद्र नाथ (रक्षा मंत्रालय का पूर्व क्लर्क, दिल्ली): 2014 में कथित रूप से ISI एजेंटों से जुड़े बैंक खातों में पैसे लेता था, बदले में सेना से जुड़ी फाइलें लीक करता था.
भारत में जासूसी के मामलों की बढ़ती संख्या के बीच एक चौंकाने वाला ट्रेंड सामने आया है. पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI ने अब अपना पैटर्न बदल दिया है. पहले जहां वह हाई-प्रोफाइल और रसूखदार लोगों को हनीट्रैप या लालच देकर अपने जाल में फंसाती थी, वहीं अब वह आम नागरिकों, तकनीकी कर्मचारियों और आर्थिक रूप से कमजोर युवाओं को निशाना बना रही है. इन मामलों से साफ है कि पहले ISI रसूखदार, सरकारी नौकरी में लगे या सेना से जुड़े लोगों को प्राथमिकता देती थी. लेकिन अब आम लोग, यूट्यूबर, व्यापारी, गार्ड, सिम सप्लायर, हर वो व्यक्ति जो थोड़ी भी जानकारी दे सकता है, उसके निशाने पर है.
बदलाव चिंता बढ़ाने वाला
यह बदलाव न सिर्फ चिंता बढ़ाने वाला है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि भारत को अब अपने नागरिकों को साइबर और जासूसी खतरों के प्रति ज्यादा सजग करना होगा. भारत में पहलगाम आतंकी हमले और इसके जवाब में चले ऑपरेशन ‘सिंदूर’ के बाद देशभर की खुफिया एजेंसियां हाई अलर्ट पर हैं. इसी के तहत बीते कुछ हफ्तों में राजस्थान, महाराष्ट्र, दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, गुजरात और पंजाब जैसे राज्यों से 15 से ज्यादा लोगों की गिरफ्तारी या हिरासत में लिए जाने की पुष्टि हुई है. ये मामले दिखाते हैं कि कैसे आम नागरिक भी अब पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI के जाल में फंसते जा रहे हैं.
मुंबई में इंजीनियर रविंद्र वर्मा को हनीट्रैप के जरिए फंसाया गया. वह युद्धपोतों के डिज़ाइन और डॉक्स की जानकारी फेसबुक पर मिली ‘पायल शर्मा’ और ‘इसप्रीत’ नाम की प्रोफाइल्स को देता था, जो दरअसल ISI एजेंट्स के मुखौटे थे. हरियाणा में यूट्यूबर ज्योति मल्होत्रा ने पाकिस्तानी उच्चायोग के अफसरों से सीधा संपर्क रखा और लाहौर जैसे इलाकों में संदिग्ध गतिविधियों में शामिल रहीं.
खुफिया एजेंसियां सतर्क
राजस्थान सरकार का कर्मचारी शकूर खान, जो एक पूर्व मंत्री का सहयोगी था, सात बार पाकिस्तान गया और अब उसके डिजिटल फुटप्रिंट में जासूसी की पुष्टि हुई है. गुजरात में स्वास्थ्यकर्मी सहदेव सिंह गोहिल ने भारतीय सैन्य साइट्स के फोटो और वीडियो ISI एजेंट को भेजे, जबकि यूपी का व्यापारी शहजाद पाकिस्तान यात्राओं के दौरान खुफिया जानकारी साझा करता था.हरियाणा में कमजोर आर्थिक पृष्ठभूमि के कई युवकों—जैसे देवेंदर ढिल्लों, नौमान इलाही, अरमान और तारीफ- को टारगेट किया गया. इन्हें हथियारों की फोटो अपलोड करने या बैंक खातों के जरिए जानकारी भेजने जैसे मामलों में गिरफ्तार किया गया है. दिल्ली पुलिस ने डीग (राजस्थान) के कासिम को भारतीय सिम कार्ड ISI को देने के आरोप में पकड़ा. मोबाइल एप्स के जरिए संवेदनशील जानकारियां भेजने के आरोप में जालंधर के मुर्तजा अली पर भी केस दर्ज हुआ है. इन तमाम मामलों के बीच एक बात साफ है कि भारत के खिलाफ खुफिया जंग अब सिर्फ सीमाओं तक सीमित नहीं रही. ऑपरेशन सिंदूर के बाद सतर्क एजेंसियों की नजर हर उस नागरिक पर है, जो सीधे या परोक्ष रूप से दुश्मन के हाथों खेल सकता है.
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