घोड़े, गधे और खच्चर! नई नहीं राजनीति में जानवरों की एंट्री

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राहुल गांधी ने भोपाल में कांग्रेस के युवा नेताओं को संबोधित करते हुए पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की तुलना घोड़े, गधे और खच्चर से की. बीजेपी ने इसे वरिष्ठ नेताओं का अपमान बताया. हालांकि यह पहला मौका नहीं है जब राजनी…और पढ़ें

घोड़े, गधे और खच्चर! नई नहीं राजनीति में जानवरों की एंट्री

राहुल गांधी के बवाल पर सियासत गरमा गई है. (File Photo)

हाइलाइट्स

  • राहुल गांधी ने वरिष्ठ नेताओं की तुलना घोड़े, गधे और खच्चर से की.
  • बीजेपी ने राहुल के बयान को वरिष्ठ नेताओं का अपमान बताया.
  • राजनीति में संवेदनशीलता घटती जा रही है, शब्दों का चयन हथियार बन चुका है.

नई दिल्‍ली. राजनीति में कटाक्ष कोई नई बात नहीं है, लेकिन जब शब्द चुभने लगें और तुलना घोड़े, गधे और खच्चर से होने लगे, तो सवाल उठना लाजमी है. राहुल गांधी भोपाल में कांग्रेस के युवा नेताओं को संबोधित कर रहे थे, लेकिन निशाने पर पार्टी के वरिष्‍ठ नेता था. जिन वरिष्‍ठ नेताओं के भरोसे आप दशकों तक पार्टी को चलाते रहे, उनका एक समय के बाद सक्रिय राजनीति से दूर होना और फिर नए नेताओं का आगे आना नेचुरल है. नए पीढ़ी आती है तो पुरानी पीढ़ी का मार्गदर्शक मंडल में जाना कोई नई बात नहीं है, लेकिन पुराने नेताओं को रास्‍ते से हटाने के लिए जब उनकी तुलना तुलना घोड़े, गधे और खच्चर से होने लगे तो सवाल उठना लाजमी है.

राहुल गांधी ने हाल ही में एक जनसभा में कहा कि कांग्रेस एक ऐसा मंच है जहां घोड़े भी हैं, गधे भी, और खच्चर भी और यह लोकतंत्र की खूबसूरती है. हालांकि ये बात उन्होंने उदारता और विविधता दिखाने के लिए कही, लेकिन इसका सियासी मतलब कुछ और ही निकाला जा रहा है. बीजेपी ने इस बयान को वरिष्ठ नेताओं का अपमान बताया है और कांग्रेस की अंदरूनी खींचतान का प्रतीक करार दिया है. यह पहली बार नहीं है जब नेताओं ने विरोधियों को जानवरों की उपमा दी हो. भारतीय राजनीति में इस तरह की भाषा पहले भी सुनने को मिलती रही है, चाहे वो सांप-छछूंदर की दोस्ती हो या बंदर की तरह उछलना. लेकिन जब राहुल गांधी जैसे वरिष्ठ नेता इस स्तर की तुलना करते हैं तो यह सिर्फ हास्य नहीं, बल्कि सियासी संकेत भी बन जाता है.

बीजेपी ने लगाया बुजुर्ग नेताओं की बेइज्‍जती का आरोप

इस बयान के पीछे का समय भी खास है. कांग्रेस में युवा नेताओं को तरजीह देने और बुजुर्ग चेहरों को दरकिनार करने को लेकर अंदरखाने बहस तेज है. राजस्थान से लेकर मध्य प्रदेश तक कई वरिष्ठ नेता खुद को हाशिए पर महसूस कर रहे हैं. ऐसे में राहुल का यह बयान कहीं न कहीं नई कांग्रेस बनाम ओल्‍ड कांग्रेस की मानसिकता को उभारता है. बीजेपी को भी बैठे-बिठाए मौका मिल गया. उन्होंने राहुल पर बुजुर्ग नेताओं की बेइज्जती करने का आरोप लगाया और सवाल उठाया कि क्या अब कांग्रेस में योग्यता का पैमाना जानवरों से तुलना है? साल 2017 में कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर ने अरविंद केजरीवाल की तुलना छोटे मच्छर से की थी। उन्होंने कहा था, “हम तो शेर हैं, मच्छर की बातों पर ध्यान नहीं देते।” इस बयान में अय्यर ने खुद को ‘शेर’ और केजरीवाल को ‘मच्छर’ बताया। साल 2019 लोकसभा चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री की तुलना पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने एक जानवार से की थी।

वायरल दिखने की होड़ में गिर रहा राजनीति का स्‍तर?

इस पूरे घटनाक्रम में असल मुद्दा है कि क्या राजनीति अब शब्दों की मार से ज्यादा कुछ नहीं बची? क्या विचारों का स्तर इतना गिर गया है कि नेताओं को अब श्रोता हंसाने या चिढ़ाने के लिए जानवरों की उपमा देनी पड़ रही है? लेकिन यह भी सच्चाई है कि आज की राजनीति में संवेदनशीलता लगभग गायब होती जा रही है. भाषणों में शब्दों का चयन अब रणनीति नहीं, हथियार बन चुका है. राहुल गांधी का बयान एक बार फिर यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या आज की राजनीति, विशेषकर युवा नेताओं की भाषा, ज्यादा वायरल दिखने की होड़ में खुद का ही नुकसान कर रही है?

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Sandeep Gupta

पत्रकारिता में 14 साल से भी लंबे वक्‍त से सक्रिय हूं. साल 2010 में दैनिक भास्‍कर अखबार से करियर की शुरुआत करने के बाद नई दुनिया, दैनिक जागरण और पंजाब केसरी में एक रिपोर्टर के तौर पर काम किया. इस दौरान क्राइम और…और पढ़ें

पत्रकारिता में 14 साल से भी लंबे वक्‍त से सक्रिय हूं. साल 2010 में दैनिक भास्‍कर अखबार से करियर की शुरुआत करने के बाद नई दुनिया, दैनिक जागरण और पंजाब केसरी में एक रिपोर्टर के तौर पर काम किया. इस दौरान क्राइम और… और पढ़ें

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