Exclusive: किश्तवाड़ या अवंतीपोरा, आखिर किस रास्ते पहलगाम में घुसे आतंकवादी?
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Pahalgam Terror Attack Update: पहलगाम में पर्यटकों पर हमला करने वाले आतंकियों को यह बात पता थी कि सेना-पुलिस को पहुंचने में समय लगेगा. सूत्रों के मुताबिक, पुलिस को ही स्पॉट तक पहुंचने में डेढ़ घंटे लग गए.

बैसरन में सर्च ऑपरेशन चलाते सुरक्षाकर्मी. (Photo : PTI)
हाइलाइट्स
- पहलगाम के आतंकी हमले में 26 निर्दोष पर्यटकों की जान गई.
- जांच बताती है कि हमलावरों ने सुनियोजित तरीके से हमला किया.
- दो संभावित रास्तों से पहलगाम पहुंचे आतंकी, हर सुराग की तलाश जारी.
नई दिल्ली: पहलगाम के बैसरन में हुए आतंकी हमले की जांच में एक नया मोड़ आया है. सूत्रों के अनुसार, हमलावर दो संभावित रास्तों में से किसी एक से पहलगाम पहुंचे हो सकते हैं – पहला किश्तवाड़ वाला रास्ता और दूसरा अवंतीपोरा की ओर से. यह जानकारी इस बात की ओर इशारा करती है कि हमले की तैयारी बेहद सुनियोजित थी और हमलावरों को इलाके की भौगोलिक स्थिति की पूरी जानकारी थी. हमले में 26 निर्दोष पर्यटकों की जान गई थी, जिसमें ज्यादातर बाहर से आए हिन्दू थे. हमले की जिम्मेदारी ‘द रेसिस्टेंस फ्रंट’ (TRF) ने ली, जिसे लश्कर-ए-तैयबा का छद्म संगठन माना जाता है. सूत्रों की मानें, तो इस हमले की साजिश आदिल हुसैन ठोकर ने रची थी. आदिल अनंतनाग जिले के गूनी गांव का रहने वाला है और उसके पाकिस्तानी लश्कर कमांडर सैफुल्ला कसूरी और अबू मूसा से सीधे संपर्क थे.
दो अहम रास्ते जो शक के घेरे में हैं:
- पहला रास्ता किश्तवाड़ से डाकसुम – लारनू – चाटपाल होते हुए ऐशमुक़म (Aishmuqam) से पहलगाम का है. ये एक अपेक्षाकृत दुर्गम लेकिन सुरक्षाबलों की निगाह से बाहर वाला इलाका है.
- दूसरा रास्ता अवंतीपोरा – त्राल – सिरिगवाड़ा होते हुए सीधे पहलगाम पहुंचता है. यही सिरिगवाड़ा आदिल का इलाका है और उसका गूनी गांव हमले की जगह से महज 15 मिनट की दूरी पर है. इससे शक और गहरा हो गया है कि हमला इसी रूट से हुआ हो.
इन दोनों रूट्स की सबसे खास बात यह है कि दोनों जगहों से सुरक्षाबलों को पहलगाम पहुंचने में वक्त लगता है. एक अधिकारी ने बताया कि सड़क खराब थी और पुलिस को घटनास्थल तक पहुंचने में डेढ़ घंटे लगे. जाहिर है कि आतंकियों ने स्थान का चुनाव इसी रणनीति के तहत किया था कि मदद देर से पहुंचे और नुकसान ज़्यादा हो.
हमलावरों की पहचान और उनका प्लान
अब तक की जांच में जिन तीन आतंकियों की पहचान हुई है, उनमें आसिफ फौजी, सुलेमान शाह और अबू तल्हा के नाम शामिल हैं. इनकी तस्वीरें चश्मदीदों के बयान के आधार पर तैयार की गई हैं. जानकारी मिली है कि ये तीनों ही सबसे आगे थे और लोगों की पहचान कर उन्हें निशाना बना रहे थे. कई पीड़ितों को दूर से स्नाइपर जैसी तकनीक से गोली मारी गई, जबकि कुछ की मौत ज़्यादा खून बहने से हुई.
जांच में यह भी सामने आया है कि हमले के समय कुछ आतंकी पास थे जबकि कुछ पीछे से कवर दे रहे थे. यानी पूरा हमला एक सुनियोजित सैन्य रणनीति जैसा था.
TRF की भूमिका और उसका नेटवर्क
2019 में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटने के बाद TRF अस्तित्व में आया था. इसे लश्कर-ए-तैयबा का फ्रंट ग्रुप माना जाता है, जो जम्मू-कश्मीर में स्थानीय युवाओं की भर्ती और ट्रेनिंग करता है. सोपोर और कुपवाड़ा में जब J&K पुलिस ने TRF से जुड़े ओवरग्राउंड वर्कर्स (OGWs) को गिरफ्तार किया था, तब पहली बार इसका बड़ा नेटवर्क सामने आया था.
सुरक्षाबल अब दोनों रास्तों की बारीकी से जांच कर रहे हैं. हर उस गांव पर फोकस है जहां से आतंकी गुज़रे हो सकते हैं.
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