एक गलती और असम-बांग्लादेश के बीच झुलती रही रहिमा की जिंदगी, दर्दनाक है कहानी

असम के गोलाघाट जिले में रहने वाली 50 साल की रहिमा बेगम की कहानी दिल झकझोर देने वाली है. अफसरों की एक चूक से उन्हें बांग्लादेश सीमा तक धकेल दिया गया. दो दिन तक वह धान के खेत में एक भूख-प्यास से बेहाल खड़ी रहीं… न बांग्लादेश उन्हें अपनाने को तैयार था, न भारत उन्हें तुरंत वापस ले रहा था.

यह घटना उस समय सामने आई, जब असम में घोषित विदेशी नागरिकों के खिलाफ कार्रवाई के तहत कई लोगों को हिरासत में लिया गया. रहिमा बेगम भी उन्हीं में से एक थीं. हालांकि, उनके वकील ने साफ किया कि फॉरेन ट्रिब्युनल (एफटी) पहले ही यह तय कर चुका था कि उनका परिवार 25 मार्च 1971 से पहले भारत में आ चुका था. असम में नागरिकता निर्धारण के लिए यही सीमा तिथि तय की गई है.

तड़के 4 बजे आई पुलिस, ले गई एसपी ऑफिस

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, रहिमा बेगम अब अपने गांव पदुमोनी (गोलाघाट) लौट आई हैं. यहां मीडिया से बातचीत में कहा, ‘रविवार सुबह लगभग 4 बजे पुलिस हमारे घर आई और मुझसे थाने चलने को कहा. वहां से हमें एसपी ऑफिस ले जाया गया, फिंगरप्रिंट लिए गए. रात को बिना किसी जानकारी के हमें एक गाड़ी में बैठाकर कहीं ले जाया गया. मुझे नहीं पता वो जगह कहां थी.’

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उन्होंने आरोप लगाया कि मंगलवार रात उन्हें और अन्य लोगों को भारत-बांग्लादेश सीमा के पास ले जाया गया और बांग्लादेशी मुद्रा देकर कहा गया कि ‘अब वापस मत आना.’ धान के कीचड़ और पानी से भरे खेतों के बीच वो एक गांव तक पहुंचीं, जहां स्थानीय लोगों ने उन्हें भगा दिया और सीमा पर तैनात सुरक्षाकर्मियों ने उन्हें पीटा और वापस लौटने को कहा.

पूरा दिन धान के खेत में खड़ी रही रहीमा

रहिमा कहती हैं, ‘हमने पूरा दिन धान के खेत में बिताया, वहीं का गंदा पानी पीया, क्योंकि किसी ओर जा नहीं सकते थे. गुरुवार शाम भारतीय सुरक्षा बलों ने हमें वापस बुलाया, बांग्लादेशी करेंसी वापस ली और मुझे कोकराझार ले गए. फिर गोलाघाट लाया गया.’

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, रहिमा के पति मलेक अली ने बताया कि शुक्रवार को दोपहर उन्हें फोन आया कि वह रहिमा को गोलाघाट से ले जाएं. ‘हमारे दो बच्चे मां को उस रात ले जाते हुए देख रहे थे, लेकिन हमें नहीं बताया गया कि वह कहां हैं.’

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एक अंक की गलती बनी जी का जंजाल

रिपोर्ट के मुताबिक, उनकी वकील लिपिका देब बताती हैं कि जोरहट एफटी ने उन्हें ‘पोस्ट स्ट्रीम’ कैटेगरी में रखा था, जिसका अर्थ है कि वे 1 जनवरी 1966 से 25 मार्च 1971 के बीच भारत आईं और उसके बाद से असम में सामान्य रूप से रह रही हैं. कानून के अनुसार, ऐसी स्थिति में व्यक्ति को 10 साल तक वोटर लिस्ट से हटाया जाता है, लेकिन उसके बाकी अधिकार और दायित्व एक भारतीय नागरिक जैसे ही रहते हैं. 10 साल बाद वह पूर्ण भारतीय नागरिक माने जाते हैं.

वकील ने बताया कि दस्तावेज में दर्ज एक अंक की गलती के कारण यह भ्रम पैदा हुआ, जिसे बाद में FRRO से सत्यापित किया गया. ‘जांच में थोड़ी सावधानी बरती जाती तो ये सब नहीं होता. सिर्फ एक नंबर का मिलान करने से पहले व्यक्ति को देश के बाहर भेजने की सोच लेना, एक मानवीय भूल नहीं बल्कि एक संस्थागत चूक है.’

मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए कहा था कि राज्य सरकार घोषित विदेशियों को सीमा पार भेजने की प्रक्रिया तेज़ कर रही है. रहिमा बेगम की घटना अब इस पूरी प्रक्रिया पर सवाल उठा रही है.

Credits To Live Hindustan

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