भारत का एक फैसला और देखते रह जाएंगे ट्रंप, ‘जिगरी दोस्त’ रूस के साथ बड़ा प्लान

नई दिल्ली. पूरी दुनिया में इस वक्त काफी उथल-पुथल मची हुई है. रूस-यूक्रेन की जंग हो या फिर इजरायल और हमास में संघर्ष… हर तरफ किसी न किसी वजह से तनाव है और यही कारण है कि सभी देशों के आपसी समीकरण में उलझे हुए हैं. अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप खुद को दुनिया का ‘चौधरी’ कहलवाने की जिद्द में हर कहीं टांग अड़ाने से पीछे नहीं हट रहे. वहीं, चीन भी पूरी कोशिश में है कि वह अमेरिका को दुनिया के सामने हमेशा नीचा दिखाए. भारत भी दुनिया को अपनी ताकत दिखा रहा है और साफ शब्दों में कह रहा है कि उसकी अपनी स्वतंत्र नीतियां हैं और वह किसी के सामने नहीं झुकेगा.

इस बीच, रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने तीन एशियाई महाशक्तियों के समूह आरआईसी का एक नया शिगूफा छोड़ दिया है. भारत ने लद्दाख में चीन के साथ 2020 के सीमा गतिरोध को सुलझा लिया है, रूस भारत पर रूस-भारत-चीन (आरआईसी) त्रिपक्षीय तंत्र को फिर से शुरू करने के लिए दबाव डाल रहा है. विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने कहा कि भारत और चीन के बीच सीमा पर स्थिति को कैसे आसान बनाया जाए, इस पर सहमति बन गई है और अब आरआईसी त्रिपक्षीय तंत्र को फिर से शुरू करने का समय आ गया है. हालांकि, इसमें चीन एक बड़ी मुश्किल खड़ी कर सकता है. आइए जानते हैं कैसे:

भारत, रूस और चीन – तीनों एशियाई महाशक्तियों का समूह RIC (Russia-India-China) त्रिपक्षीय मंच है, जिसे सामरिक संवाद और सहयोग के लिए 2002 में शुरू किया गया था. हालांकि, RIC मंच की कल्पना आपसी समझ, क्षेत्रीय स्थिरता और वैश्विक बहुध्रुवीय व्यवस्था को मजबूत करने के लिए की गई थी, लेकिन भारत के लिए इस मंच में सक्रिय भागीदारी में सबसे बड़ी बाधा चीन ही है. इसके पीछे कई कारण हैं, जो भू-राजनीतिक, सैन्य, कूटनीतिक और आर्थिक दृष्टि से गंभीर हैं.

1. सीमा विवाद और सैन्य टकराव
भारत और चीन के बीच दशकों से सीमा विवाद चला आ रहा है, जो 2020 में गलवान घाटी संघर्ष के बाद और भी तीव्र हो गया। इसमें 20 भारतीय जवान शहीद हुए, और चीन ने भी नुकसान उठाया, हालांकि उसने कभी आधिकारिक आंकड़े नहीं दिए. जब दो देशों के बीच सैन्य तनाव इतना अधिक हो, तो किसी बहुपक्षीय मंच पर आपसी विश्वास के आधार पर सहयोग करना अत्यंत कठिन हो जाता है.

2. रणनीतिक असमानता और चीन की विस्तारवादी नीति
चीन का दृष्टिकोण RIC जैसे मंचों को अपने रणनीतिक हितों को आगे बढ़ाने का एक औजार मानता है. उसकी बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव (BRI), जिसमें भारत की संप्रभुता का उल्लंघन कर पाक अधिकृत कश्मीर से गलियारा गुजरता है, भारत को चिंतित करता है. ऐसे में RIC जैसे मंच पर भागीदारी से भारत को यह डर रहता है कि वह कहीं अनजाने में चीन की रणनीतिक योजनाओं को वैधता न दे दे.

3. पाकिस्तान पर मतभेद
भारत के लिए आतंकवाद एक प्रमुख मुद्दा है, खासकर पाकिस्तान-प्रायोजित आतंकवाद। वहीं, चीन बार-बार संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में पाकिस्तान के आतंकियों को वैश्विक आतंकवादी घोषित करने में अड़चन डालता रहा है. भारत को लगता है कि RIC में चीन के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा होना, उसके आतंकवाद विरोधी रुख को कमजोर कर सकता है.

4. रूस के साथ रिश्तों पर असर
RIC का एक और जटिल पक्ष है रूस की भूमिका. भारत और रूस के लंबे समय से दोस्ताना संबंध रहे हैं, लेकिन हाल के वर्षों में रूस और चीन की बढ़ती नजदीकी ने भारत को असहज किया है. भारत नहीं चाहता कि वह चीन के प्रभाव में आए हुए रूस के साथ एक मंच पर खड़ा हो, जहां वह दबाव में आ जाए.

5. QUAD और इंडो-पैसिफिक नीति से टकराव
भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ मिलकर QUAD का हिस्सा है, जो इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन की आक्रामकता को संतुलित करने की रणनीति है. RIC में भागीदारी चीन के साथ सहयोग का संकेत देती है, जिससे भारत की रणनीतिक साख पर विपरीत असर पड़ सकता है.

RIC का मंच, भले ही कूटनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हो, लेकिन भारत के लिए चीन एक स्थायी बाधा बना हुआ है. सीमाई तनाव, विश्वास की कमी, आतंकवाद पर विरोधाभासी रुख और चीन की वैश्विक महत्वाकांक्षाएं – ये सभी RIC में भारत की सक्रियता को सीमित करते हैं. भारत के लिए चुनौती यह है कि वह रूस से पुराने संबंध बनाए रखे, लेकिन चीन की रणनीतिक चालों से खुद को बचाए भी.

Credits To Live Hindustan

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *