बीटेक का सबसे कठिन कोर्स, डिग्री मिलना मुश्किल, करोड़ों में होगी सैलरी

ॉबनई दिल्ली (Aerospace Engineering, Most Difficult BTech Course). हर साल बड़ी संख्या में स्टूडेंट्स बीटेक कोर्स में एडमिशन लेते हैं. 12वीं के बाद बीटेक करने के लिए मैथ, फिजिक्स और केमिस्ट्री जैसे विषयों में मजबूत पकड़ होना जरूरी है. बीटेक कोर्स 4 सालों का होता है. इन दिनों एयरोस्पेस इंजीनियरिंग को इंजीनियरिंग की सबसे कठिन ब्रांच की लिस्ट में गिना जा रहा है. इसे एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग भी कहा जाता है.
एयरोस्पेस इंजीनियरिंग ब्रांच में कई जटिल विषय हैं. इसकी पढ़ाई पूरी करने के लिए उच्च स्तर की मेहनत और सटीकता की जरूरत पड़ती है. एयरोस्पेस इंजीनियरिंग का सिलेबस इतना कठिन होता है कि ज्यादातर स्टूडेंट्स के लिए 4 सालों में इसकी डिग्री लेना मुश्किल हो जाता है (Most Difficult BTech Course). हालांकि, बीते कुछ सालों में इसकी डिमांड बहुत बढ़ गई है. एयरोस्पेस इंजीनियरिंग करने के बाद आप विदेश में भी नौकरी कर सकते हैं. इसे हाई पेइंग जॉब्स में शामिल किया गया है.
एयरोस्पेस इंजीनियरिंग सबसे कठिन क्यों है?
एयरोस्पेस इंजीनियरिंग बीटेक की ही एक ब्रांच है. विभिन्न संस्थानों में इसकी पढ़ाई करवाई जाती है. जानिए एयरोस्पेस इंजीनियरिंग सबसे कठिन बीटेक कोर्स क्यों है.
कॉम्प्लेक्स विषय
एयरोस्पेस इंजीनियरिंग सिलेबस में भौतिकी (फिजिक्स), गणित, थर्मोडायनामिक्स, फ्लुइड डायनामिक्स, मटीरियल साइंस, कंप्यूटर साइंस और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे कई क्षेत्रों की गहन पढ़ाई करवाई जाती है. इन सभी विषयों को एक साथ समझना और उन्हें प्रैक्टिकल में लागू कर पाना काफी चैलेंजिंग होता है.
गलती की नहीं है गुंजाइश
एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में हवाई जहाज, अंतरिक्ष यान, मिसाइल और रॉकेट जैसे वाहनों को डिजाइन और कंस्ट्रक्ट किया जाता है. इस काम में छोटी सी गलती भी बड़े हादसों का कारण बन सकती है. हर डिजाइन और हिस्से पर बहुत ज्यादा ध्यान देना पड़ता है.
हर हालात की तैयारी
अंतरिक्ष यानों को अत्यधिक दबाव, तापमान और गुरुत्वाकर्षण (Gravity) में बदलाव जैसी कठिन स्थितियों में काम करना होता है. इसलिए एयरोनॉटिकल इंजीनियर या एयरोस्पेस इंजीनियर को कॉम्प्लेक्स गणनाओं और इनोवेशन पर काम करना होता है.
कई साल चलेगी पढ़ाई
एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में मास्टरी हासिल करने के लिए लंबे समय तक गहन पढ़ाई और प्रैक्टिकल प्रशिक्षण की जरूरत होती है. आप बीटेक के बाद इसी से जुड़ा मास्टर्स कोर्स भी कर सकते हैं. इसमें कॉम्प्लेक्स सॉफ्टवेयर, सिमुलेशन और टेस्टिंग प्रक्रियाएं शामिल होती हैं.
मल्टीडिसिप्लिनरी अप्रोच
एयरोस्पेस इंजीनियरिंग या एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग में कई इंजीनियरिंग क्षेत्रों का ज्ञान एक साथ लागू करना पड़ता है. इसमें मैकेनिकल, इलेक्ट्रिकल और कंप्यूटर साइंस से जुड़े कई कॉन्सेप्ट इस्तेमाल किए जाते हैं. इस वजह से यह ब्रांच काफी कठिन बन जाती है.
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Aerospace Engineer Salary: एयरोस्पेस इंजीनियर सैलरी और करियर स्कोप
12वीं के बाद एयरोस्पेस इंजीनियरिंग कोर्स में एडमिशन लेना चाह रहे हैं तो आपको इसके करियर स्कोप और सैलरी की जानकारी भी होनी चाहिए.
एयरोस्पेस इंजीनियर की सैलरी कितनी होती है?
एयरोस्पेस इंजीनियर की औसत वार्षिक सैलरी विदेशों में (खास तौर पर अमेरिका, स्विट्जरलैंड, जर्मनी) 80 लाख से 1 करोड़ रुपये तक हो सकती है. अनुभव के साथ एयरोस्पेस इंजीनियर की सैलरी कुछ सालों में ही बढ़ सकती है.
भारत में एयरोस्पेस इंजीनियर की शुरुआती सैलरी 6-15 लाख रुपये सालाना हो सकती है. लेकिन अनुभव और विशेषज्ञता के साथ यह 50 लाख से ऊपर जा सकती है. आपको ISRO, DRDO या बोइंग, एयरबस जैसी अंतरराष्ट्रीय कंपनियों में नौकरी मिल सकती है.
स्पेस ट्रैवल, हवाई यात्रा और डिफेंस सेक्टर में वृद्धि के कारण एयरोस्पेस इंजीनियर की मांग तेजी से बढ़ रही है. भारत में ISRO, HAL में सरकारी नौकरी और कई निजी कंपनियों में अच्छी पोजिशन पर नौकरी मिल सकती हैं.
Aerospace Engineer Jobs: एयरोस्पेस इंजीनियर के लिए करियर विकल्प
भारत हो या विदेश, एयरोस्पेस इंजीनियर के लिए करियर विकल्पों की कोई कमी नहीं है. 12वीं के बाद एयरोस्पेस इंजीनियर की डिग्री मिलते ही आप एयरक्राफ्ट डिजाइनर, स्पेसक्राफ्ट इंजीनियर, मिसाइल सिस्टम डेवलपर, एविएशन रिसर्चर, टेस्टिंग इंजीनियर आदि के तौर पर सरकारी नौकरी या प्राइवेट जॉब कर सकते हैं. टेक्नोलॉजी और इन्फ्रास्ट्रक्चर में डेवलपमेंट की वजह से इन क्षेत्रों में नौकरियों की कोई कमी नहीं है. इस ब्रांच में सैलरी अन्य ब्रांचेस की तुलना में तेजी से बढ़ती है.
एयरोस्पेस इंजीनियर कैसे बनें?
12वीं के बाद एयरोस्पेस इंजीनियर बनने के लिए 12वीं में सही विषयों का चयन करना जरूरी है. इसके साथ ही इसरो आदि की वेबसाइट पर भी नजर रखें.
शैक्षिक योग्यता: 12वीं में PCM (फिजिक्स, केमिस्ट्री, मैथ्स) में कम से कम 75% अंक और JEE Main/Advanced में अच्छा स्कोर.
कॉलेज: IITs (मद्रास, बॉम्बे, दिल्ली), NITs या BITS पिलानी जैसे टॉप संस्थानों में एडमिशन लें.
स्किल्स: गणित, प्रोग्रामिंग और प्रॉब्लम-सॉल्विंग स्किल्स को मजबूत करें.
प्रैक्टिकल अनुभव: इंटर्नशिप और प्रोजेक्ट्स के जरिए अनुभव हासिल करें.
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