रेप केस में सुप्रीम ट्विस्ट, युवक को ठहराया दोषी, फिर स्पेशल पावर से किया बरी

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Supreme Court News: सुप्रीम कोर्ट ने रेप के दोषी युवक को सजा नहीं दी क्योंकि वह पीड़िता से शादीशुदा है और उनकी एक बेटी है. कोर्ट ने पीड़िता की भलाई को प्राथमिकता देते हुए यह निर्णय लिया. कोर्ट ने संविधान के अनु…और पढ़ें

रेप केस में सुप्रीम ट्विस्ट, युवक को ठहराया दोषी, फिर स्पेशल पावर से किया बरी

कोर्ट ने अहम फैसला सुनाया. (News18)

हाइलाइट्स

  • सुप्रीम कोर्ट ने रेप के दोषी को सजा नहीं दी.
  • पीड़िता और दोषी अब शादीशुदा हैं और उनकी एक बेटी है.
  • कोर्ट ने अनुच्छेद 142 के तहत विशेष अधिकारों का उपयोग किया.

नई दिल्‍ली. सुप्रीम कोर्ट में आज एक ऐसा मामला सामने आया, जिसने भी इसे सुना वो हैरान रह गया. दरअसल, जस्टिस ए.एस. ओका और उज्जल भुइयां की बेंच ने कहा यह युवक दोषी है. इसी ने ही बच्‍ची के साथ रेपी किया है. कोर्ट ने युवक को दोषी करार दिया. बेंच ने सजा पर कहा कि अगर इस युवक को जेल की सलाखों के पीछे डाल दिया गया कि युवती को और ज्‍यादा नुकसान होगा. ऐसा इसलिए क्‍यों‍कि युवक और पीड़िता अब शादीशुदा हैं. उनकी एक बेटी भी है. बेंच ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत सुप्रीम कोर्ट की स्‍पेशल पावर का उपयोग करते हुए कहा, “हालांकि दोषी को दोषसिद्ध ठहराया गया है, उसे सजा नहीं भुगतनी होगी.”

साल 2018 में हुआ था रेप

इंडियन एक्‍सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार कोर्ट ने पश्चिम बंगाल सरकार को निर्देश दिया था कि तीन विशेषज्ञों की एक समिति गठित कर पीड़िता से मुलाकात की जाए. समिति की रिपोर्ट और पीड़िता से बातचीत के बाद कोर्ट ने पाया कि दोषी को जेल भेजने से पीड़िता की स्थिति और बिगड़ेगी. जस्टिस ओका ने लिखा, “2018 की तुलना में पीड़िता की स्थिति अब बेहतर है. वह अपने छोटे से परिवार के साथ खुश है, अपनी बेटी की अच्छी शिक्षा पर ध्यान दे रही है, और खुद अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने के लिए उत्साहित है. वह स्नातक तक पढ़ाई करना चाहती है, न कि कोई व्यावसायिक कोर्स.”

‘असल न्याय तभी होगा जब दोषी को…’

कोर्ट ने माना कि कानूनन दोषी को न्यूनतम सजा देना अनिवार्य है, लेकिन इस मामले में समाज, पीड़िता के परिवार और कानूनी व्यवस्था ने पहले ही उसे पर्याप्त कष्ट दिए हैं. “हम पीड़िता के साथ और अन्याय नहीं करना चाहते. उसे पहले ही काफी आघात झेलना पड़ा है. हमारी आंखें इन कठोर वास्तविकताओं से नहीं हट सकतीं,” कोर्ट ने कहा. न्यायालय ने जोर दिया कि असल न्याय तभी होगा जब दोषी को पीड़िता से अलग न किया जाए. कोर्ट ने कहा, “राज्य और समाज को यह सुनिश्चित करना होगा कि यह परिवार पूरी तरह स्थिर हो.” पीड़िता की शिक्षा और परिवार की आर्थिक स्थिति को मजबूत करने के लिए राज्य को सहायता प्रदान करने का निर्देश भी दिया गया. यह फैसला न केवल कानूनी दृष्टिकोण से बल्कि सामाजिक और मानवीय संवेदनाओं के आधार पर भी एक मिसाल है, जो पीड़िता के पुनर्वास और भविष्य को प्राथमिकता देता है. यह निर्णय दर्शाता है कि न्याय केवल सजा तक सीमित नहीं, बल्कि पीड़ित की भलाई भी उतनी ही महत्वपूर्ण है.

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Sandeep Gupta

पत्रकारिता में 14 साल से भी लंबे वक्‍त से सक्रिय हूं. साल 2010 में दैनिक भास्‍कर अखबार से करियर की शुरुआत करने के बाद नई दुनिया, दैनिक जागरण और पंजाब केसरी में एक रिपोर्टर के तौर पर काम किया. इस दौरान क्राइम और…और पढ़ें

पत्रकारिता में 14 साल से भी लंबे वक्‍त से सक्रिय हूं. साल 2010 में दैनिक भास्‍कर अखबार से करियर की शुरुआत करने के बाद नई दुनिया, दैनिक जागरण और पंजाब केसरी में एक रिपोर्टर के तौर पर काम किया. इस दौरान क्राइम और… और पढ़ें

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