राजाओं के शौक, लड़ाइयों के निशान… सब सिमटा है इन चुप खांभी में!
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Gujarat Ancient Traditions: खांभी और पाळिया में अंतर है. खांभी पारंपरिक याद के लिए होती है, सगो दुर्घटना में मृत्यु पर और पाळिया युद्ध में मारे गए व्यक्ति के लिए होती है. अमरेली में ये परंपरा आज भी देखी जा सकती…और पढ़ें

हाइलाइट्स
- खांभी और पाळिया में अंतर है.
- खांभी पारंपरिक याद के लिए होती है.
- पाळिया युद्ध में मारे गए व्यक्ति के लिए होती है.
अमरेली: अमरेली और सौराष्ट्र के अधिकांश क्षेत्रों में राजशाही समय की खांभी आज भी देखी जा सकती हैं. ये खांभी राजशाही समय में सम्मान की परंपरा थीं. वर्तमान समय में ये खांभी अमरेली जिले के सावरकुंडला तालुका के ग्रामीण क्षेत्रों में देखी जा सकती हैं. मंगलुभाई खुमाण ने बताया कि खांभी की परंपरा वर्षों पुरानी है. खांभी के कई प्रकार होते हैं जैसे खांभी, सगो, पाळिया आदि. सगो तब खड़ा किया जाता है जब कोई दुर्घटना में मृत्यु को प्राप्त होता है. युद्ध में मारे गए व्यक्ति को पाळिया कहा जाता है. जबकि खांभी पारंपरिक याद की खांभी कहलाती है. यह खांभी वंश परंपरागत याद के लिए खड़ी की जाती है.
खांभी की परंपरा वर्षों पुरानी है
मंगलुभाई खुमाण ने बताया कि खांभी की परंपरा वर्षों पुरानी है. खांभी के कई प्रकार होते हैं जैसे खांभी, सगो, पाळिया आदि. सगो तब खड़ा किया जाता है जब कोई दुर्घटना में मृत्यु को प्राप्त होता है. युद्ध में मारे गए व्यक्ति को पाळिया कहा जाता है. जबकि खांभी पारंपरिक याद की खांभी कहलाती है. यह खांभी वंश परंपरागत याद के लिए खड़ी की जाती है.
मंगलुभाई खुमाण ने बताया कि, “हमारे पूर्वज मेथाला और हीरावाला थे. इसके बाद मेवासा का निर्माण किया गया और यहां राज्य व्यवस्था स्थापित की गई. तब से इस मेवासा गांव में खड़ी की गई खांभी आज भी स्थिर हैं. भगवान बापू ने मेवासा में निवास किया था और इसके बाद वंश परंपरागत ये खांभी बनाई गई हैं. यह खांभी भगवान बापू, उनके बेटे जीवा बापू, उनके बेटे भीम बापू, और उनके बेटे आपा बापू द्वारा बनाई गई हैं. लोकतंत्र के बाद यह परंपरा समाप्त हो गई है.”
अमरेली जिले के सावरकुंडला तालुका का मेवासा गांव राजशाही समय के रजवाड़े का महत्व रखता है. इस गांव से शासन किया जाता था और आज भी यहां उस समय की खांभी देखी जा सकती हैं. इन खांभी पर कितने गांवों का शासन था यह लिखा हुआ है और मेवासा के कितने गांव थे यह सहित अन्य विवरण उकेरे गए हैं.
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मंगलुभाई खुमाण ने बताया कि, “खांभी में जिस विषय का शौक होता है वह खांभी में उकेरा जाता है और खांभी में सूर्य और चंद्रमा के निशान बनाए जाते हैं. मेरे दादा को बाज पालने का शौक था, इसलिए उनके हाथ में एक बाज है ऐसा खांभी में उकेरा गया है. इसलिए खांभी में जिस राजा को जो शौक होता है वह उकेरा जाता है.”
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