अखिलेश, ओडिशा और श्रीराम… एक ‘छोटी सी मुलाकात’ से कांग्रेस में क्यों मची खलबली

नई दिल्ली: राजनीति में जो दिखता है, वह हमेशा सच नहीं होता. और जो सामने नहीं दिखता, अक्सर वही सबसे बड़ा खेल होता है. भुवनेश्वर में हाल ही में जो दिखा, उसने कांग्रेस के भीतर हलचल मचा दी है. कांग्रेस के सीनियर नेता श्रीकांत जेना और समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव एक ही मंच पर नजर आए. साथ में प्रेस कॉन्फ्रेंस की. बातें समाजिक न्याय की हुईं. तारीफों का पुल भी बना. लेकिन इन सबके बीच कांग्रेस की ओडिशा यूनिट के कान खड़े हो गए.

बात सिर्फ मिलने की होती, तो ठीक था. पर प्रेस वालों को बुलाकर साथ बयान देना? वो भी तब जब जेना खुद पार्टी में किनारे किए जाने की शिकायत कर रहे हैं. फरवरी में प्रदेश अध्यक्ष पद पर उनसे जूनियर नेता भक्ता चरण दास को बैठा दिया गया. तब से जेना खफा हैं, लेकिन कहने को कह रहे हैं- ‘मैं कहीं नहीं जा रहा’.

अखिलेश डाल रहे डोले, मानेंगे जेना?

अखिलेश यादव ने भी आग में घी डाला. बोले, ‘अगर ऐसे नेता साथ आएं तो समाजिक न्याय की लड़ाई मजबूत होगी.’ यानी जेना में उन्हें भविष्य नजर आ रहा है. और शायद ओडिशा में पांव जमाने का मौका भी. जेना ने सफाई दी. बोले, ‘अखिलेश जी पुरी दर्शन को आए थे. पुरानी दोस्ती है, तो मिल लिए. प्रेस कॉन्फ्रेंस बस संयोग था.’ लेकिन कांग्रेसियों को ये संयोग जरा हजम नहीं हो रहा.

ओडिशा कांग्रेस की हालत वैसे ही पतली है. न जमीन बची है, न संगठन मजबूत है. ऐसे में जेना जैसे सीनियर नेता की नाराजगी और पब्लिक में उनका SP प्रमुख के साथ दिखना, पार्टी के लिए झटका है. दिल्ली के एक सीनियर कांग्रेस नेता ने द इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में कहा, ‘जेना जी को पार्टी में बनाए रखना जरूरी है. उनसे बात होगी.’ लेकिन सिर्फ बात से कुछ होगा? जेना जैसे नेता को पार्टी में ‘पद और पहचान’ दोनों चाहिए.

कांग्रेस को सता रहा डर!

ओडिशा के एक कांग्रेस विधायक ने तो साफ कहा, ‘जेना को AICC में बड़ा रोल दो, वरना वो जा सकते हैं. SP भले सहयोगी हो, पर राजनीति में हर कोई अपने फायदे की सोचता है.’ और ये डर वाजिब भी है. SP के सूत्र मान रहे हैं कि वे ओडिशा में विस्तार चाहते हैं. कुछ BJD नेताओं से भी संपर्क में हैं. मौका भी है. कांग्रेस टूटी हुई है, BJD अंदरूनी झगड़ों से जूझ रही है और बीजेपी की पकड़ अभी नई है.

SP का प्लान साफ है, जहां बाकी लड़खड़ा रहे हैं, वहां पैर जमाओ. और जेना जैसा अनुभवी चेहरा उनके लिए गेमचेंजर हो सकता है. जेना खुद भी कम खिलाड़ी नहीं हैं. 2019 में पार्टी से निकाले गए थे. 2024 में लौटे, पर चुनाव हार गए. अब ऐसे समय में अखिलेश के साथ उनकी जोड़ी बैठी है तो उसमें सिर्फ ‘पुरानी दोस्ती’ नहीं, कुछ और भी है.

Credits To Live Hindustan

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