मुस्लिम आरक्षण वाली फाइल गर्वनर ने राष्ट्रपति को भेजी, क्या पहले कभी हुआ?

कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने सरकारी ठेकों में मुसलमानों को अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के तहत 4% आरक्षण देने वाला बिल विधानसभा में पास किया तो खूब हंगामा हुआ. लेकिन सरकार अड़ी रही. मगर जब यह बिल गवर्नर थावरचंद गहलोत के पास पहुंचा तो उन्होंने इस पर अड़ंगा लगा दिया और राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के पास भेजकर निर्देश मांगा कि इसे पास मंजूरी देनी चाहिए या नहीं. गर्वनर ने कहा, यह बिल संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन करता है, क्योंकि यह धर्म के आधार पर आरक्षण देता है, जो संविधान की मूल भावना के खिलाफ है. अब राष्ट्रपति इस पर क्या फैसला लेंगी, यह तो आने वाला वक्त बताएगा, लेकिन क्या पहले कभी ऐसा हुआ. अगर हुआ तो क्या फैसला आया.
संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत गर्वनर को विधानसभा में पारित हर बिल पर अपनी मुहर लगानी होती है. या तो वे मुहर लगाते हैं या फिर असहमत होने पर उसे फिर सरकार को वापस कर देते हैं. वह चाहें तो राष्ट्रपति के पास भी भेज सकते हैं, ताकि दिशा निर्देश लिए जा सकें कि इस बिल को मंजूरी देनी है या नहीं. इसी के आधार पर पिछले कुछ वर्षों में कई राज्यों के गर्वनर राष्ट्रपति को बिल भेजते रहे हैं.
केरल का विश्वविद्यालय कानून संशोधन बिल
केरल विधानसभा ने 2015 में विश्वविद्यालयों में कुलपति की नियुक्ति प्रक्रिया में बदलाव के लिए एक बिल पास किया. तत्कालीन राज्यपाल पी सदाशिवम ने इसे संविधान के खिलाफ मानते हुए राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को भेज दिया था. राष्ट्रपति ने बिल पर कोई फैसला नहीं लिया और इसे वापस राज्य सरकार को भेज दिया. बाद में केरल हाई कोर्ट ने बिल को ही रद्द कर दिया, क्योंकि यह विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता के खिलाफ था.
तमिलनाडु का जेनेरिक मेडिसिन बिल
ठीक इसी तरह तमिलनाडु सरकार ने 2018 में दवाओं की कीमतों को नियंत्रित करने के लिए एक बिल पास किया. तब राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित ने इसे केंद्र के कानूनों के खिलाफ बताते हुए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को भेजा. राष्ट्रपति ने बिल को मंजूरी नहीं दी और इसे असंवैधानिक करार दिया. इसके बाद राज्य सरकार ने बिल को संशोधित कर फिर से पेश किया, जो बाद में पास हो गया.
पश्चिम बंगाल का कृषि कानून रद्द करने का बिल
पश्चिम बंगाल सरकार ने 2021 में केंद्र के तीन कृषि कानूनों को रद्द करने का बिल पास किया. राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने इसे संविधान के संघीय ढांचे के खिलाफ मानते हुए राष्ट्रपति को भेजा. राष्ट्रपति ने बिल पर कोई फैसला नहीं लिया, क्योंकि केंद्र सरकार ने पहले ही तीनों कृषि कानून वापस ले लिए थे. इस मामले में कोई और कार्रवाई नहीं हुई.
तेलंगाना का लैंड एक्विजिशन बिल
तेलंगाना सरकार ने 2023 में किसानों की जमीन अधिग्रहण के लिए एक नया बिल पास किया. राज्यपाल तमिलिसाई साउंडराजन ने इसे किसानों के हितों के खिलाफ मानते हुए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को भेजा. राष्ट्रपति ने बिल पर विचार के लिए इसे वापस राज्य सरकार को भेजा. बाद में राज्य सरकार ने बिल में संशोधन कर इसे फिर से पेश किया, जो पास हो गया.
राज्यपाल और गर्वनर के अधिकार क्या हैं?
गर्वनर का अधिकार- अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल बिल को राष्ट्रपति के पास भेज सकता है, अगर उसे लगता हो कि बिल संविधान के खिलाफ है या यह राज्य और केंद्र के बीच टकराव पैदा कर सकता है.
राष्ट्रपति का अधिकार- राष्ट्रपति बिल को मंजूरी दे सकता है, अस्वीकार कर सकता है, या इसे वापस राज्य सरकार को विचार के लिए भेज सकता है. अब तक ज्यादातर मामलों में यही हुआ है.
Credits To Live Hindustan