अमेरिका के साथ तेल का खेल और बदले में एक सौदेबाजी… ट्रंप के टैरिफ की काट!

अमेरिका और चीन के बीच चल रहे टैरिफ वार में भारत अपनी नई चाल चल रहा है. भारत ने साफ कर दिया है कि वह अमेरिकी ब्रांड्स के लिए उन उत्पादों को बनाने को तैयार है जो अभी चीन में बनते हैं. इससे भारत एक मजबूत मैन्युफैक्चरिंग हब बन सकता है. अमेरिका के साथ टैरिफ को लेकर बातचीत भी तेज हो रही है. भारत इस मौके का फायदा उठाने की पूरी कोशिश कर रहा है.

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ओर से दुनिया से शुरू किए टैरिफ वार से इतर भारत और अमेरिका के बीच इस मसले पर बातचीत तेजी से आगे बढ़ने के आसार हैं. दोनों देशों के अधिकारियों के बीच वर्चुअल बैठकें चल रही हैं और मई में दोनों देश व्यापार समझौते पर आमने-सामने की चर्चा करेंगे. भारत ने वार्ता में तेज लाने का फैसला किया है. वह 90 दिन की राहत अवधि का इंतजार नहीं करना चाहता. सरकारी सूत्रों का कहना है कि भारत बंदूक की नोक पर बातचीत नहीं करेगा. भारत कुछ झुकने को तैयार है, लेकिन वह वैश्विक बाजारों खासकर अमेरिका से ज्यादा से ज्यादा फायदा लेना चाहता है.

अमेरिका से तेल आयात बढ़ाने की योजना
अमेरिका को रूस से भारत के तेल आयात पर आपत्ति है. इसे ध्यान में रखते हुए भारत ने अमेरिका से तेल आयात बढ़ाने का प्रस्ताव रखा है. यह कदम व्यापार वार्ता का हिस्सा है. इसके अलावा भारत ने ऑटो पार्ट्स पर रियायत मांगी है और ऐपल के मोबाइल उत्पादों का भारत में उत्पादन बढ़ाने की योजना बनाई है. भारत ने अमेरिकी कंपनियों को भरोसा दिलाया है कि वह चीन में बनने वाले कुछ उत्पादों को भारत में बना सकता है. इससे भारत को मैन्युफैक्चरिंग हब के रूप में नई पहचान मिल सकती है.

चीन और वियतनाम पर नजर
भारत इस बात को लेकर सतर्क है कि चीन और वियतनाम जैसे देश जो अन्य क्षेत्रों में भारी टैरिफ का सामना कर रहे हैं, भारतीय बाजार में अपने सामान की डंपिंग न करें. सरकार ने आयात पर नजर रखने के लिए एक समिति बनाई है. सूत्रों का कहना है कि भारत कंबोडिया और वियतनाम जैसे देशों के टैरिफ संकट का फायदा नहीं उठाना चाहता. भारत अपनी जरूरतों और हितों को प्राथमिकता देगा. सरकार का मानना है कि पारंपरिक बाजारों से हटकर नए उत्पादों और बाजारों पर ध्यान देना चाहिए. इसके लिए कॉरपोरेट सेक्टर को प्रोत्साहन दिया जाएगा, ताकि वे प्रतिस्पर्धी उत्पाद बना सकें.

भारत की उम्मीदें और रणनीति
सरकार को भरोसा है कि भारत टैरिफ के इस तूफान से बचा रहेगा. भारत न केवल अमेरिका के साथ अपने व्यापारिक रिश्तों को मजबूत करना चाहता है, बल्कि वैश्विक मंच पर अपनी स्थिति को भी सुदृढ़ करना चाहता है. चीन और अमेरिका के बीच चल रही व्यापार जंग में भारत एक संतुलित रुख अपना रहा है. वह न तो किसी का पक्ष लेना चाहता है और न ही किसी के नुकसान का अनुचित फायदा उठाना चाहता है. इसके बजाय भारत अपनी आर्थिक नीतियों को मजबूत करने और आत्मनिर्भरता बढ़ाने पर ध्यान दे रहा है.

भारत की रणनीति साफ है
वह अमेरिका जैसे बड़े बाजारों के साथ बेहतर व्यापारिक रिश्ते बनाएगा, लेकिन अपनी शर्तों पर. ऐपल जैसे बड़े ब्रांड्स पहले से ही भारत में अपने उत्पादन को बढ़ा रहे हैं, और सरकार इस दिशा में और कंपनियों को आकर्षित करना चाहती है. ऑटो पार्ट्स और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे क्षेत्रों में भारत अपनी क्षमता को और मजबूत करना चाहता है. साथ ही, तेल आयात जैसे रणनीतिक कदमों से भारत अमेरिका के साथ अपने रिश्तों को और गहरा कर सकता है.

आगे की राह
चीन और अमेरिका के बीच टैरिफ वार ने वैश्विक व्यापार को हिलाकर रख दिया है. इस संकट में भारत के लिए एक बड़ा मौका है. अगर भारत अपनी मैन्युफैक्चरिंग क्षमता को बढ़ाता है और अमेरिकी ब्रांड्स के लिए वैकल्पिक हब बनता है, तो यह न केवल आर्थिक विकास को गति देगा, बल्कि भारत की वैश्विक छवि को भी मजबूत करेगा. हालांकि, इसके लिए सावधानी बरतनी होगी. चीन और वियतनाम जैसे देशों से डंपिंग का खतरा है, और भारत को अपने बाजार को सुरक्षित रखना होगा.

सरकार की नजर नए बाजारों और उत्पादों पर है. वह कॉरपोरेट सेक्टर को प्रोत्साहन देकर भारत को प्रतिस्पर्धी बनाने की कोशिश कर रही है. यह समय भारत के लिए अपनी आर्थिक नीतियों को और मजबूत करने का है. अमेरिका के साथ वार्ता में भारत को अपनी शर्तों पर फायदा उठाना होगा, ताकि वह वैश्विक व्यापार में एक मजबूत खिलाड़ी बन सके. भारत की यह रणनीति न केवल टैरिफ युद्ध के प्रभावों से बचाएगी, बल्कि उसे वैश्विक मैन्युफैक्चरिंग और व्यापार के नक्शे पर एक नई पहचान भी देगी. सरकार का आत्मविश्वास और साफ रणनीति इस बात का संकेत है कि भारत इस मौके को भुनाने के लिए पूरी तरह तैयार है.

Credits To Live Hindustan

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *