टेकऑफ के समय ऑटोपायलट में क्यों नहीं होता विमान, क्या लैंडिंग में होता है यूज?
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Autopilot Mode: विमान के टेकऑफ करते समय ऑटोपायलट मोड का इस्तेमाल नहीं होता है, क्योंकि यह जटिल प्रक्रिया है. इस दौरान पायलट को हर पहलू पर पूरा कंट्रोल रखना होता है.

ऑटोपायलट मोड में डालने से पायलट के रिएक्शन में देरी हो सकती है जो खतरनाक हो सकता है.
हाइलाइट्स
- टेकऑफ के समय ऑटोपायलट मोड का उपयोग नहीं होता है
- टेकऑफ के दौरान पायलट को हर पहलू पर नियंत्रण रखना होता है
- लैंडिंग के समय ऑटोपायलट मोड का उपयोग किया जा सकता है
Autopilot Mode: बीते 12 जून को एयर इंडिया की फ्लाइट AI-171 अहमदाबाद से लंदन के लिए रवाना हुई थी. लेकिन उड़ान भरने के कुछ ही पलों बाद यह विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया. इस दर्दनाक हादसे में दो सौ से ज्यादा यात्रियों की मौत हुई. अहमदाबाद विमान हादसे से जुड़ी सवालों की फेहरिस्त काफी लंबी है. हर कोई इन सवालों का जवाब जानना चाहता है. सबसे बड़ा सवाल यही है कि आखिर अहमदाबाद में टेकऑफ के तुरंत बाद आखिर ऐसी क्या दिक्कत हुई कि विमान चंद सेकेंड में आग में गोले में बदल गया. इस हादसे की वजह विमान की तकनीकी खराबी थी या फिर कुछ और. हालांकि इसका जवाब जांच के बाद सामने आएगा. जिसमें अभी समय लग सकता है.
कमर्शियल हवाई जहाज आमतौर पर उड़ान भरने के लिए ऑटोपायलट मोड का उपयोग नहीं करते हैं. क्योंकि यह उड़ान के इस चरण के लिए प्रमाणित नहीं है. हालांकि ऑटोपायलट का उपयोग चढ़ाई, क्रूज और उतरने के लिए किया जा सकता है. यहां तक कि विशिष्ट परिस्थितियों में ऑटोमैटिक लैंडिंग के लिए भी. लेकिन टेकऑफ को ऑटोपायलट मोड के लिए बहुत महत्वपूर्ण और जटिल माना जाता है. टेकऑफ एक ऐसा समय होता है जब पायलट को हर चीज पर ध्यान देना होता है और ऑटोपायलट मोड में डालने से यह कंट्रोल कम हो सकता है.
एक बार जब विमान एक निश्चित ऊंचाई पर पहुंच जाता है और स्थिर हो जाता है, तो पायलट ऑटोपायलट मोड को सक्रिय कर सकते हैं. ऑटोपायलट तब विमान की ऊंचाई, गति और दिशा को नियंत्रित करता है जिससे पायलटों को अन्य महत्वपूर्ण कार्यों (जैसे नेविगेशन, संचार और सिस्टम की निगरानी) पर ध्यान केंद्रित करने का समय मिलता है. विमान में ऑटोपायलट मोड के लिए एक फ्लाइट कंट्रोल कम्प्यूटर (एफसीसी) लगा होता है. ऑटोपायलट मोड सेंसर और सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करके काम करता है. फ्लाइट कंट्रोल कम्प्यूटर में पायलट विमान किस रास्ते से जाएगा, उसकी ऊंचाई क्या होगी और कितनी गति में चलेगा यह सब कुछ दर्ज कर देता है. इसके बाद एफसीसी एयर डेटा सेंसर, जिरोस्कोप, एक्सेलेरोमीटर, जीपीएस आदि माध्यमों से फ्लाइट डेटा प्राप्त करता है. इसके बाद फ्लाइट कंट्रोल कम्प्यूटर इन तमाम डेटा को एकत्रित करके उड़ान को एक तय रास्ते पर ले जाता है. ऑटोपायलट मोड को लेकर पायलट हमेशा सतर्क रहते हैं. अगर किसी प्रकार की कोई दिक्कत पैदा होती है तो तुरंत प्रभाव से विमान को मैन्युअली नियंत्रित करने की कोशिश करते हैं.
लैंडिंग से पहले ऑटोपायलट मोड को बंद कर दिया जाता है. पायलट मैन्युअली विमान को नीचे लाते हैं और उसे रनवे पर उतारते हैं. हालांकि ऑटोपायलट मोड का इस्तेमाल विशिष्ट परिस्थितियों (जैसे कम दृश्यता) में ऑटोमैटिक लैंडिंग के लिए किया जा सकता है. आधुनिक विमानों में ऑटोमैटिक लैंडिंग सिस्टम होते हैं जो इंस्ट्रूमेंट लैंडिंग सिस्टम (ILS) और अन्य ग्राउंड-बेस्ड नेविगेशन सिस्टम का उपयोग करके विमान को रनवे पर सुरक्षित रूप से उतारने में मदद करते हैं. विशेष रूप से कमर्शियल एयरलाइंस के कुछ विमानों में ऑटोमैटिक लैंडिंग सिस्टम होते हैं जो पायलट की मदद के बिना विमान को लैंड करा सकते हैं. बशर्ते परिस्थितियां अनुकूल हों और रनवे पर उपयुक्त सिस्टम लगे हों.
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यात्रियों से भी होती है सावधानी की उम्मीद
विमान जब जमीन से हवा में उड़ता है (टेकऑफ) और जब हवा से वापस जमीन पर उतरता है (लैंडिंग) से पहले यात्रियों से अपनी सीटें सीधी करने के लिए कहा जाता है. ये इसलिए किया जाता है क्योंकि यह उनकी जिंदगी और मौत से जुड़ा होता है. किसी भी फ्लाइट की टेकऑफ और लैंडिंग वही समय होता है, जब सबसे ज्यादा विमान दुर्घटनाएं होती हैं. ऐसे में अगर सीट पीछे की तरफ झुकी हुई होती है तो वह लॉक नहीं होती है. जिसकी वजह से झटका लगने कारण व्यक्ति की मौत तक हो सकती है. यही वजह है कि इस दौरान यात्रियों से सीट सीधी रखने और सीट बेल्ट बांधने के लिए कहा जाता है.
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