क्यों बदले PK के बोल? तेजस्वी-नीतीश और राहुल के बाद PM मोदी पर क्यों हमलावर?

पटना. क्या बिहार चुनाव से पहले जन सुराज पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर ने अपनी रणनीति में बड़ा बदलाव कर लिया है? क्या पीके बदलाव यात्रा में जुट रही भीड़ से उत्साहित होकर पीएम मोदी पर भी हमला करने लगे हैं? ये कुछ सवाल हैं, जो पीके की रणनीति में बड़ा रोल अदा करने वाले हैं.बिहार की सियासत में बदलाव की बात करने वाले प्रशांत किशोर (PK) इन दिनों फिर सुर्खियों में हैं. जन सुराज के बैनर तले राज्यभर में चल रही उनकी बदलाव यात्रा अब निर्णायक मोड़ पर पहुंच चुकी है. अब तक जिस PK की आलोचना मुख्य रूप से नीतीश कुमार, तेजस्वी यादव और कांग्रेस तक सीमित थी, वही अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भी खुलकर बोलने लगे हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या PK की रणनीति बदल गई है? और क्यों अब वह मोदी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल रहे हैं, जबकि पहले वह या तो चुप रहते थे या बहुत संतुलित टिप्पणी किया करते थे?

PK का अब तक का रुख मोदी पर संयम और विपक्ष पर निशाना हुआ करता था. प्रशांत किशोर की अब तक की रणनीति यह रही थी कि वे भाजपा और खासकर पीएम मोदी पर सीधी टक्कर लेने से बचते रहे. 2022 और 2023 में कई मंचों पर उन्होंने कहा था कि ‘मोदी जी आज के भारत में सबसे लोकप्रिय नेता हैं’. उन्होंने यहां तक कहा था कि ‘2024 में बीजेपी को हराना आसान नहीं है, क्योंकि कांग्रेस और विपक्ष संगठित नहीं है’

पीके के बोल अचानक क्यों बदल गए?
इस तरह PK अब तक भाजपा की आलोचना से अधिक विपक्ष की विफलताओं की ओर इशारा करते रहे, जिससे यह धारणा बनी कि वह मोदी विरोधी नहीं, बल्कि विपक्ष की रणनीति से असंतुष्ट हैं. लेकिन अब क्या बदला? क्यों सीधे बोले PK? बदलाव यात्रा के पूर्णिया, सासाराम और समस्तीपुर चरण में PK ने स्पष्ट रूप से प्रधानमंत्री मोदी की आलोचना की. उन्होंने कहा, “मोदी सरकार ने पिछले 10 सालों में गरीबों को केवल राशन और आश्वासन दिया, लेकिन न शिक्षा मिली, न रोजगार. बिहार जैसे राज्यों की मूल समस्याएं वहीं की वहीं हैं. जो कहते थे अच्छे दिन आएंगे, उन्होंने बिहार को ग़रीबी, पलायन और जातीय हिंसा में झोंक दिया.’

यह बयान न केवल तीखा है, बल्कि यह दर्शाता है कि अब PK केवल क्षेत्रीय मुद्दों तक सीमित नहीं रहना चाहते. वह खुद को एक वैकल्पिक राष्ट्रीय सोच के प्रतिनिधि के रूप में स्थापित करना चाहते हैं.

रणनीति में बदलाव क्यों?
राजनीतिक विश्लेषक संजीव पांडेय कहते हैं, ‘PK को यह समझ आ गया है कि केवल विपक्ष की आलोचना कर के वे अपने लिए पर्याप्त जनाधार नहीं बना सकते. अगर उन्हें लोगों को यह यकीन दिलाना है कि “वह सच्चा विकल्प हैं”, तो उन्हें सत्ता पक्ष से भी टकराना होगा. भाजपा-विरोधी वोट बैंक को साधना अब उनके लिए बड़ी चुनौती है. बीते बिहार विधानसभा चुनाव में 10 प्रतिशत वोट और सी वोटर के सर्वे में नीतीश से ज्यादा लोगों की पसंद से पीके अब काफी उत्साहित हो गए हैं.बिहार में भाजपा के विरोधी मतदाताओं की बड़ी संख्या है. अगर PK को कांग्रेस और राजद का विकल्प बनना है तो उन्हें इन मतदाताओं को भरोसे में लेना होगा. इसके लिए मोदी सरकार की नीतियों पर हमला करना जरूरी है.’

क्या राष्ट्रीय नेता बनेंगे पीके?
प्रशांत किशोर अब सिर्फ बिहार तक सीमित नेता नहीं बनना चाहते. मोदी पर हमला कर के वे खुद को उस वर्ग में शामिल करना चाहते हैं जहां लोग उन्हें एक राष्ट्रीय नेता की तरह देखने लगें, न कि सिर्फ एक रणनीतिकार या चुनावी मैनेजर के तौर पर. वहीं कुछ विश्लेषकों का मानना है कि PK धीरे-धीरे अपना राजनीतिक चेहरा स्पष्ट कर रहे हैं. वे किसी गठबंधन का हिस्सा नहीं बनना चाहते, बल्कि जन आंदोलन के रास्ते सत्ता तक पहुंचना चाहते हैं.

प्रशांत किशोर की यात्रा अब “योजना” से “सियासत” में बदल रही है. मोदी सरकार पर तीखे हमले करके उन्होंने यह साफ कर दिया है कि अब वे केवल एक नीतिगत विश्लेषक नहीं, बल्कि एक पॉलिटिकल चैलेंजर हैं. बिहार चुनाव में यह बदलाव कितना असर डालेगा, यह तो समय बताएगा, लेकिन इतना तय है कि PK अब चुप नहीं रहने वाले. यह बदलता हुआ रवैया बताता है कि बिहार की राजनीति में अब मुकाबला सिर्फ पुराने चेहरों का नहीं होगा. PK नाम का नया खिलाड़ी भी मैदान में पूरी ताक़त से उतर चुका है.

Credits To Live Hindustan

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *