11 घरों में मातम, पर किसी की जिम्मेदारी नहीं, ये कैसी जीत, ये कैसा जश्न?

RCB की ऐतिहासिक जीत पर जब पूरा शहर जश्न में डूबा था, तब चिन्नास्वामी स्टेडियम के बाहर 11 घरों में मातम पसर चुका था. भगदड़ में दम घुटने से हुई इन मौतों ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया. लेकिन हादसे के बाद कोई जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं. सरकार से लेकर बीसीसीआई और RCB तक, हर कोई बस एक ही बात कह रहा है कि ‘हमारा रोल नहीं था’.
डीके शिवकुमार बोले- हम लाठीचार्ज तो नहीं कर सकते थे
राज्य के डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार ने कहा, RCB की जीत पर लोग बहुत भावुक थे. हम पुलिस से लाठी चलाने को कैसे कह सकते थे? ये बयान तब आया जब चश्मदीदों ने बताया कि लाखों की भीड़ एक ही गेट पर जमा थी, बैरिकेड्स टूट गए थे, और पुलिस का नियंत्रण पूरी तरह खत्म हो चुका था.
बीसीसीआई की ओर से दिए गए बयान में कहा गया, ये स्थानीय आयोजन था. ट्रॉफी के साथ टीम पहुंची थी, लेकिन कार्यक्रम की सुरक्षा व्यवस्था का जिम्मा स्थानीय प्रशासन का था. हमारी कोई भूमिका नहीं थी. यानी क्रिकेट बोर्ड ने भी सीधा पल्ला झाड़ लिया.
RCB ने क्या कहा
RCB के प्रवक्ता ने कहा, 18 साल के लंबे इंतजार के बाद ट्रॉफी आई थी. उत्साह तो होगा ही. हमने पुलिस और आयोजकों से निर्देश लेकर ही जुलूस का हिस्सा लिया था. यानी यहां भी जिम्मेदारी किसी और पर डाल दी गई.
बीसीसीआई के उपाध्यक्ष राजीव शुक्ला ने बयान दिया कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है. लेकिन हमें जांच पूरी होने तक दोषारोपण से बचना चाहिए. यानी मौतों की जिम्मेदारी तय करने के बजाय, सभी ‘समझदारी’ की बात कर रहे हैं.
यानी कोई दोषी नहीं?
बेंगलुरु की सड़कों पर जहां लोग कोहली के कटआउट को माला पहना रहे थे, वहीं अस्पतालों और मोर्चरी में परिवारों की आंखें अपनों को ढूंढ़ रही थीं. सवाल यह है कि जब स्टेडियम की क्षमता 32,000 थी, तो 1 लाख लोग अंदर कैसे पहुंचे? जब 2 लाख की भीड़ की उम्मीद थी, तो 6 लाख को क्यों नहीं रोका गया? RCB की ट्रॉफी जीत भले ऐतिहासिक हो, लेकिन इस जश्न ने 11 परिवारों की जिंदगी उजाड़ दी. और सबसे बड़ा शर्मनाक सच यह है कि ‘हर कोई पल्ला झाड़ चुका है’.
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