नीतीश यात्रा में अकेले क्यों है, BJP के डिप्टी सीएम साथ में क्यों नहीं?

23 दिसंबर के दिन जिस समय चंपारण का न्यूनतम तापमान 10 डिग्री के करीब है, पटना में राजनीतिक पारा बढ़ चला है. वर्ष 2025 के अंत में बिहार विधान सभा के चुनाव तय हैं लेकिन उसके पहले पछुआ हवा की वैसी मार नहीं देखी जा रही है, जैसे बिहार के मैदानी हिस्सों में अमूमन देखी और महसूस की जाती है.
नीतीश कुमार एक अनुभवी राजनीतिक यात्री की भांति एक बार फिर अपने सियासी सफर पर निकल चुके हैं. इस बार यात्रा का मूल तत्व यानि थीम है प्रगति. हर बार नीतीश की यात्रा किसी ने किसी विषय को केन्द्र में रखकर की जाती है, जिसका जायजा लेने वो अपने अमले के साथ पहुंचते हैं.

विकास के पैमाना बढ़ा प्रगति करेंगे सुनिश्चित
नीतीश कुमार को पश्चिम चंपारण और वाल्मीकि नगर इलाका प्रिय है. खासकर यहां की हरियाली और वन्य प्राणी. पहले नीतीश पटना के कोलाहल से दूर वाल्मिकीनगर को भी अपने ठहरने का ठिकाना बनाते थे लेकिन इस बार पटना से ही ज्यादा आना-जाना रहेगा. उनकी यात्रा में खेल विभाग, पथ निर्माण, गन्ना उद्योग, शिक्षा विभाग, ऊर्जा विभाग और पर्यटन से जुड़े मुद्दों को प्राथमिकता से देखेंगे. साथ ही लव-कुश का भी जिक्र देखेंगे. यात्रा की पृष्टभूमि पर थोड़ी चर्चा इसलिए क्योंकि विपक्ष की तरफ से ऐसे सावल उठाए जा रहे हैं कि नीतीश यात्रा में अकेले क्यों है? बीजेपी के मंत्री या उप मुख्यमंत्री क्यों नहीं?

नीतीश कुमार इस यात्रा में अकेले होते हैं. गठबंधन दलों के लोग उनके साथ नहीं होते इसलिए क्योंकि इसमें सरकारी कार्यों का लेखा जोखा ज़्यादा होता है, राजनीति की बातें कम. नीतीश कुमार अपने मुख्यमंत्रित्व काल में विकास पुरुष के रूप में जाने गए लेकिन प्रगति यात्रा के बाद खुद को ‘प्रगति पुरुष’ के रूप में स्थापित करना चाहेंगे.

किसी छवि में नहीं बंधना नहीं चाहते नीतीश
नीतीश एक छवि में बंधकर नहीं रहते हैं पर ये बात तय है कि विकास की अवधारणा हर बार की यात्रा में और भी पुख्ता होती है. आप सबको याद होगा कि नीतीश की महिला संवाद यात्रा से बहुत लालू यादव ने कुछ अप्रिय और अशोभनीय टिप्पणी की थी लेकिन नीतीश ने लालू के अभद्र टिप्पणी पत्र जवाब देना उचित नहीं समझा. नीतीश जानते हैं बिहार की प्रगति अगर सुनिश्चित करनी है तो महिलाओं को केंद्र में रखना होगा क्योंकि मातृ-शक्ति नीतीश कुमार के लिए तुरुप का पत्ता साबित होती रही हैं. चुनावी मौसम है इसलिए लालू के सुपुत्र तेजस्वी यादव भी यदा-कदा नीतीश की यात्रा और उनकी उम्र पर तल्ख टिप्पणी करते रहते हैं.

बिहार में एक ही नीतीश, कोई और नहीं
नीतीश एनडीए का चेहरा घोषित हो चुके हैं, इसमें किसी को संशय नहीं रहना चाहिए, इसलिए 15 जनवरी को मकर संक्रांति के ठीक एक दिन बाद बिहार एनडीए पूरी ताकत के साथ मैदान में होगा. इस बीच नीतीश को लेकर कई नारे गढ़े जा रहे हैं. जेडीयू जिसके वो सर्वे-सर्वा हैं, ने अपनी पोस्ट में नारा दिया है ‘जब बात बिहार की हो, नाम सिर्फ नीतीश कुमार का हो.’ ये स्लोगन पहले के नारे ‘अबकी बार नीतीशे कुमार’ से थोड़ा लंबा है पर इतना समझना ज़रूरी है कि नीतीश कुमार अभी भी बिहार में सत्ता की धुरी बने हुए हैं. अभी भी उनका विकल्प तैयार नहीं हुआ है. न पक्ष में न विपक्ष में.

सड़क बिजली पानी हुआ, अब उद्योग और निवेश की बात
समाजवादी पृष्टभूमि में पले-बढ़े, रचे-बसे नीतीश ने भले ही सामाजिक संरचनाओं के विकास को वर्षों तक अपनी प्राथमिकता बनाकर रखा लेकिन 2024 के जाते-जाते निवेश को लेकर सकारात्मक माहौल बनाने में उनकी सरकार सफल रही. 1.80 करोड़ रुपये के निवेश प्रस्तावों के लेकर बिहार एक बड़ी छलांग लेने की दिशा में बढ़ चला है.

नीतीश जानते हैं कि प्रदेश के युवाओं को नौकरी देने में सरकार एक सीमा तक ही सफल हो सकती है. रोजगार तो उद्योगों से ही सृजित होना है. चाहे वो स्टील, मशीनरी या उपकरण बनाने की बात हो या टेक्सटाइल हब बनाने की बात हो. नीतीश अपनी पिछली छवि से बाहर निकल प्रगति के रथ पर सवार हो यात्रा पर निकल चुके हैं लेकिन क्या बिहार की जनता अब भी नीतीश पर उतना ही विश्वास करती है? अगर करती है तो कितना? नीतीश नहीं तो और कौन? नीतीश से बेहतर कौन, आखिर विकल्प क्या है?
जनता बेहतर जानती है, उसे क्या चाहिए, कौन चाहिए.

(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए News18Hindi उत्तरदायी नहीं है.)

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